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नवरात्र चाहे शारदीय हो या वासंतिक दोनों का ही संबंध किसी न किसी रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के साथ है :- डाॅ.रवि नंदन मिश्र

वाराणसी/देहरादून। वासंतिक नवरात्र शिशिर और शीत ऋतुओं की समाप्ति के पश्चात आता है। शिशिर के बाद अचानक भगवान भाष्कर का रुख मकर के बजाय कर्क रेखा पर केंद्रित हो जाता है। इसलिए पूरे देश में गर्मी बढ़ने लगती है। इसका असर मानव शरीर पर प्रत्यक्षतः होता है। ऐसे ही शारदीय नवरात्र का आगमन तब होता है जब वर्षा ऋतु का समापन होता है और वातावरण साफ हो जाता है। कुवार महीने में धूप तीखी होती है। कहा भी जाता है कि इस धूप में हिरण की पीठ भी काली हो जाती है। आयुर्वेद में इस काल को वैद्यों के लिए माता के समान बताया गया है। कारण शरद ऋतु में हर परिवार तरह-तरह के रोगों से पीड़ित होता है। कहने का तात्पर्य दोनों ही नवरात्र मौसम के संधिकाल  में मनाए जाते हैं। माता दुर्गा ही हमारी रक्षक हैं इस नाते हम इन दोनों ही नवरात्र में मां भगवती की अभ्यर्थना करते हैं। दोनों नवरात्र को यम के दो दंत का रूप भी बताया गया है। ऐसे में नवरात्र में स्वास्थ्य, समृद्धि, ऐश्वर्य आदि के लिए प्रार्थना की जाती है।
*दोनों ही नवरात्र का संबंध मर्यादा पुरुषोत्तम राम से*
नवरात्र चाहे शारदीय हो या वासंतिक दोनों का ही संबंध किसी न किसी रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के साथ है। शारदीय नवरात्र में जहां भगवान श्री राम रावण पर जीत हासिल करते हैं। वह दिन विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है। वहीं वासंतिक नवरात्र की महानवमी को भगवान श्री राम का जन्म दिन मनाया जाता है। काशी में इसका भी महात्म्य है।
*वासंतिक नवरात्र में नौ गौरी का पूजन अर्चन*
नए संवत्सर के साथ शुरू होने वाले वासंतिक नवरात्र में माता के नौ गौरी स्वरूप का पूजन-अर्चन किया जाता है। इसके तहत प्रथम नवरात्र को मुख निर्मालिका गौरी, दूसर दिन ज्येष्ठा गौरी, तीसरे दिन सौभाग्य गौरी, चौथे दिन श्रृंगार गौरी, पांचवें दिन विशालाक्षी गौरी, छठें दिन ललिता गौरी, सातवें दिन भवानी गौरी, आठवें दिन मंगला गौरी और नौवें व अंतिम दिन महालक्ष्मी गौरी का पूजन अर्चन किया जाता है।
*प्रथमं मुख निर्मालिका गौरी*
प्रकृति की अभ्यर्थना मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। प्रकृति को विभिन्न रूपों में प्रदर्शित कर उनकी पूजा करने की परंपरा पूरे विश्व में प्रचलित है। पृथ्वी, नदी, पहाड़, आकाश, समुद्र, चंद्रमा व सूर्यकी पूजा लगभग सभी प्राचीन सभ्यता में की जाती है। प्रकृति और विभिन्न ऋतुओं के आधार पर त्योहार जनमानस में प्रचलित हैं। संस्कृति व सभ्यता के विकास के साथ ही सुरक्षा, शांति व विकास के लिए विभिन्न देवी देवताओं की पूजा विधि विकसित की गई। इसी के तहत वासंतिक नवरात्र में नौ गौरी स्वरूप का पूजन होता है। काशी में वासंतिक नवरात्र के पहले दिन  मुख निर्मालिका गौरी का पूजन होता है। इनका विग्रह गायघाट स्थित हनुमान मंदिर में स्थित है। शक्ति के उपासक पहले दिन शैलपुत्री देवी का पूजन-अर्चन करते हैं। शैलपुत्री का मंदिर अलईपुर इलाके में स्थित है।
*द्वितीयं ज्येष्ठा  गौरी*
वासंतिक नवरात्र में नव गौरी के दर्शन-पूजन के क्रम में दूसरे दिन ज्येष्ठा गौरी के दर्शन पूजन की मान्यता है। इनका मंदिर सप्तसागर (कर्णघंटा) क्षेत्र में स्थित है। नव दुर्गा के पूजा के क्रम में दूसरे दिन शक्ति के उपासक ब्रह्मचारिणी देवी का भी दर्शन-पूजन करते हैं। इनका विग्रह ब्रह्माघाट इलाके में है। ब्रमह्म चारिणी के पूजन का मंत्र है, ब्रह्मा चाश्यितुं शील यास्याः सा ब्रह्मचारिणी. अर्थात जो देवी सच्चिदानंदमय ब्रह्म स्वरूपा को प्राप्त करने वाली स्वभाव की हो वह मूर्ति ब्रह्मचारिणी की है। देवी का ध्यान इस मंत्र से किया जा सकता है- दधाना कर पद्माध्या यक्षमाला कमण्डलू। देवी प्रसीदंतुमयी ब्रह्म चारिण्य नुगामा।.
*तृतीयं सौभाग्य गौरी*
 पूजन-अर्चन के क्रम में तीसरे दिन सौभाग्य गौरी के दर्शन-पूजन का महात्मय है। इन देवी का विग्रह ज्ञानवापी क्षेत्र स्थित सत्यनारायण मंदिर के अंदर अवस्थित है। नव दुर्गा के क्रम में तीसरे दिन चित्रघंटा देवी के दर्शन-पूजन की मान्यता है। इनका मंदिर चौक क्षेत्र में है। चंद्रघंटा देवी के आराधना का मंत्र है, वियदीकारं संयुक्तं वीति क्षेत्र समन्वितम्। अर्धेन्त्मुसितं देव्या बीज स्वार्थ साधकम्।. एवमेकाक्षरं ब्रह्म यतयः शुद्धं चेत स। ध्यायंति परमानंदमया ज्ञानाम्बुराशयः।।
 *चतुर्थ श्रृंगार गौरी*
चौथे दिन दर्शन-पूजन के क्रम में चौथे दिन श्रृंगार गौरी के पूजन की मान्यता है। इन भगवती का विग्रह ज्ञानवापी परिसर में मस्जित के पीछे स्थित है। शक्ति के उपासक इस दिन कूष्मांडा देवी की आराधना करेंगें। मां दुर्गा का मंदिर दुर्गाकुंड क्षेत्र में स्थित है। स ऊंण्डे मांस येश्यामुदरुपायां यास्यसा कूष्मांडा। देवी के इस स्वरूप के पूजन में इस मंत्र का प्रयोग किया जा सकता है, अर्द्ध मात्रा स्थिता नित्या यानुच्चायां, विशेशेषतः। स्वमेव संध्या गायत्री त्वं देवी जननी पुरा।.
*पंचम विशालाक्षी गौरी*
पांचवें दिन विशालाक्षी गौरी का दर्शन-पूजन होता है। देवी के इस स्वरूप का विग्रह मीरघाट क्षेत्र में धर्मकूप इलाके में अवस्थित है। इन्हें इस मंत्र से ध्यान कर सकते हैं, नमस्ते अस्तु भगवते मातरस्यानि पाहि सर्वतः। शक्ति के उपासक इस दिन बागेश्वरी देवी का पूजन अर्चन करेंगे। देवी का मंदिर जैतपुरा इलाके में स्थित है। बागेश्वरी देवी की मान्यता स्कंद माता के रूप में है। इनका ध्यान इस मंत्र से किया जाता है, सिंहासन गता नित्यं पद्यान्वित कर द्वया। शुभ दास्तु महादेवी स्कंदमाता यशस्विनी।  *षष्ठं ललिता गौरी*
छठें दिन ललिता गौरी के दर्शन-पूजन का महत्व है। भगवती के इस रूप का विग्रह ललिता घाट क्षेत्र में है। नवदुर्गा के दर्शन-पूजन के क्रम में छटें दिन शक्ति के उपासक कात्यायनी देवी का दर्शन-पूजन करेंगे। देवी का मंदिर संकठा गली में आत्म विशेश्वर मंदिर में अवस्थित है। ध्यानमंत्र है, देवानाम कार्य सिद्धार्थआविर्भवति सातता।।       *सप्तम् भवानी गौरी*
सातवें दिन भवानी गौरी के दर्शन-पूजन की मान्यता है। देवी के इस रूप का विग्रह विश्वनाथ गली में श्री राम मंदिर में अवस्थित है। शक्ति के उपासक इस दिन कालरात्रि देवी का पूजन अर्चन करेंगे। कालरात्रि देवी का मंदिर कालिका गली में स्थित है। कालस्यपि रात्रि समकाल रात्रि। इसके अलावा करोतु सा नः शुभ हेतु रीश्वरी, शुभानी भद्राव्यभिन्हतदु चापदाः।
*अष्टम् मंगला गौरी*
आठवें दिन माता के गौरी स्वरूप के मंगला गौरी के पूजन-अर्चन का विधान है। इनका मंदिर पंचगंगा घाट इलाके में है। शक्तिक  उपासक इस दिन महागौरी की अभ्यर्थना करेंगे। यह मंदिर श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के समीप माता अन्नपूर्णा के मंदिर के रूप में विख्यात है। *ध्यान मंत्र है, ऊं संहस्था शशिशेखरा मकरत, प्ररण्वैश्चतुर्भिर्भुत्नः शंक चक्रधनु शंखश्च। दधती नत्रैस्तिभि शोभिता आमुक्तांग,दाहकरकं कणाश्णारका च्यीरणत्रुपरा,दुर्गा दुर्गातिहारिणी भवतु नो रत्नोल्लसरकुंण्डला।।*
*नवम् महालक्ष्मी गौरी*
नौवें दिन भगवती के गौरी स्वरूप में महालक्ष्मी गौरी के पूजन का महात्मय है। इनका मंदिर लक्सा क्षेत्र में लक्ष्मीकुंड पर स्थित है। शक्तिक उपासक इस दिन शक्ति की अधिष्ठात्री देवी सिद्धदात्री देवी का दर्शन-पूजन करते हैं। इनका मंदिर कालभैरव मंदिर से पहले गोलघर इलाके में स्थित है।
डाॅ.रवि नंदन मिश्र*
*असी.प्रोफेसर (वाणिज्य विभाग)एवं कार्यक्रम अधिकारी*
*राष्ट्रीय सेवा योजना*
( *पं.रा.प्र.चौ.पी.जी.काॅलेज,वाराणसी*) *सदस्य- 1.अखिल भारतीय ब्राम्हण एकता परिषद, वाराणसी,*
*2. भास्कर समिति,भोजपुर ,आरा*
*3.अखंड शाकद्वीपीय  एवं*
*4. उत्तरप्रदेशअध्यक्ष – वीर ब्राह्मण महासंगठन,हरियाणा*

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