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छत्तीसगढ़ में बूथ 35 से 60 किमी दूर, ऐसे में कैसे मनेगा लोकतंत्र का महापर्व

भोपालपटनम। छत्तीसगढ़ के आखिरी छोर पर बसी चार पंचायतों में न तो चुनावी शोर है और न ही यहां के सैकड़ों बाशिंदे लोकतंत्र का महापर्व मना पाएंगे। दरअसल किसी पंचायत की दूरी पोलिंग बूथ से 35 तो किसी की 60 किमी है। मतदान के लिए इतनी दूरी पैदल पहाड़ी और पथरीले रास्तों को तय करना लगभग नामुमकिन है। पहले चरण में इन इलाकों में 12 नवंबर को मतदान होना है। बड़ेकाकलोड़, सेण्ड्रा, केरपे एवं एड़ापल्ली पंचायतों के पोलिंग बूथ को 2013 के विधानसभा और 2014 के लोकसभा चुनाव में शिफ्ट किया गया था। इस विधानसभा चुनाव में भी इन पंचायतोें के मतदान केंद्रों को भोपालपटनम ब्लॉक मुख्यालय और भैरमगढ़ ब्लॉक के करकेली में शिफ्ट किया गया है।

भोपालपटनम से बड़े काकलेड़ 35, एड़ापल्ली 52, सण्ड्रा 60 और केरपे करीब 100 किमी दूर है। केरपे के मतदान केंद्रों को करकेली लाया गया है, जबकि बाकी तीन पंचायतों के बूथ को भोपालपटनम में शिफ्ट किया गया है। केरपे से करकेली की दूरी कोई 10 किमी है। इस पंचायत के केरपे में 266, दुड़ेपली में 210, करकावाड़ा में 197, नेतीवाड़ा में 44 एवं नेतीकाकलेड़ में 55 मतदाता हैं। शेष तीन पंचायतों के लोगों को काफी दूर पैदल चलकर मतदान करने जाना पड़ेगा। सण्ड्रा में 576, चेरपल्ली में 254, अननापुर में 188, बडेक़ाकलेड़ में 319 एवं पिल्लर में 276 वोटर्स हैं। वहीं इरपागुड़ा में 200, एड़ापल्ली में 398, पालसीगुहाड़ी में 134 और कोंदलापर्ती में 139 मतदाता हैं। दूरी के चलते यहां के मतदाताओं का आना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि रास्ते पथरीले और पहाड़ी हैं। ये इलाका माओवादी ‘प्रभुत्व” वाला है और माओवादियों ने पहले से ही चुनाव बहिष्कार का ऐलान कर रखा है। ये भी मतदाताओं के भोपालपटनम तक वोट डालने आने में सबसे बड़ा रोड़ा है। हालांकि, रविवार को जिला निर्वाचन अधिकारी केडी कुंजाम ने बीजापुर में बूथ शिफ्टिंग की वजह इलाके को समस्याग्रस्त और विषम भौगोलिक स्थिति को बताया है।

कई गांव वीरान तो कई ने गांव छोड़ा इस इलाके में कई गांव वीरान हैं तो कई गांव के कुछ परिवारों ने गांव छोड़ दिया है। इनमें से कुछ लोग भोपालपटनम में आकर रह रहे हैं। इनके लिए एक मोहल्ला सेण्ड्रापारा बना है। अपने खेत छोड़ यहां बसे लोग अब मजदूरी कर गुजर बसर कर रहे हैं। इसके बाद भी कई परिवार केरपे, एड़ापल्ली, सण्ड्रा, बड़ेंकाकलेड़ में हैं। वे वहीं खेती करते हैं। सण्ड्रा गांव के लोग महाराष्ट्र के सरहदी गांवों और कस्बों पर रोजमर्रा की वस्तुओं के लिए आश्रित हैं।

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