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खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलना शहीदों की शान में गुस्ताखीः मोर्चा      

विकासनगर। जन संघर्ष मोर्चा अध्यक्ष एवं जीएमवीएन के पूर्व उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदला गया है, जोकि देश हित में काम करने वाले शहीद के समकक्ष नेताओं, सैनिकों व अन्य देश प्रेमियों के साथ खिलवाड़ है, क्योंकि राजीव गांधी कांग्रेस के नेता नहीं भारत के प्रधानमंत्री थे। इसमें कोई  दो राय नहीं कि महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद ने भारत का नाम विश्व पटल विख्यात किया था, जिस पर सरकार को चाहिए था कि इनके नाम पर कोई अन्य बड़ा पुरस्कार घोषित करती, लेकिन एक शहीद के समकक्ष नेता का नाम हटाकर दूसरों के नाम पर करना, निश्चित तौर पर आपत्तिजनक है। सरकार ने शांति सेना के रूप में अपनी जान गंवाने वाले सैकड़ों शहीदों की शान में भी गुस्ताखी करने का काम किया है।                नेगी ने केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि स्व. राजीव गांधी, जिन्होंने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए वर्ष 1987 के दौरान  लिट्टे जैसे खूंखार आतंकवादी संगठन को नेस्तनाबूद करने व पड़ोसी देश में शांति बहाल करने के साथ-साथ अपने देश के तमिलनाडु राज्य में विद्रोह की चिंगारी न भड़के आदि मामलों के मद्देनजर  शांति सेना गठित करने जैसे कदम उठाए थे तथा इससे नागवार होकर ही लिट्टे ने मानव बम के जरिए वर्ष 1991 में इनकी हत्या करा दी थी। इससे पूर्व भी इस समझौते से खफा होकर श्रीलंका में एक सैनिक द्वारा बंदूक बट के प्रहार से राजीव गांधी पर हमला किया गया था द्य यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि पद पर रहते हुए देश हित के लिए लिए गए फैसलों के परिणाम स्वरूप अगर किसी नेता की हत्या होती है तो क्या वो साधारण मौत कहलाई जाएगी !  क्या केंद्र सरकार नरेंद्र मोदी व अरुण जेटली स्टेडियम का नाम भी बदलेगी। नेगी ने उदाहरण देते हुए कहा कि महान नेता पूर्व प्रधानमंत्री स्व. वाजपेयी जी ने वर्ष 1998 में देश हित में पोखरण परमाणु परीक्षण कर सुरक्षा की दृष्टि से कवच प्रदान किया था। अगर इस परीक्षण से खफा होकर कोई देश या अन्य आतंकवादी उनकी हत्या करता तो क्या वो सामान्य मौत होती, क्या उनको शहीद के समकक्ष दर्जा नहीं मिलता। मोर्चा सरकार से मांग करता है कि शहीदों का अपमान बंद कर कुछ बड़ा करने की सोचें।

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