National

बिहार का एक गांव ऐसा भी है जहां के लोग रूपये की पहचान उसका रंग देखकर करते हैं

गया । एक तरफ हम चांद पर घर बसाने की बात करते हैं तो वहीं एक क्षेत्र ऐसा भी है जहां अभाव में लोग कंद-मूल खाकर गुजारा करते हैं। 120 लोगों के टोले में एक भी व्यक्ति साक्षर नहीं । रुपये की पहचान भी उसका रंग देखकर करते हैं। सरकार की कोई योजना आज तक यहां सिरे नहीं चढ़ी। हम बात कर रहे हैं गया जिले के कठौतिया केवाल पंचायत के बिरहोर टोले की। प्रखंड से 15 किलोमीटर दूर जंगल में बसे बिरहोर जाति के लोग आज भी उपेक्षित हैं। बिहार में विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके इस जाति के लोगों के विकास के लिए सरकार ने पहल तो की पर अपेक्षा से काफी कम। एक दशक पहले इस टोले की सुध राज्य सरकार ने ली थी। सुविधाएं मिलने से कुछ समय तक इनकी स्थिति में सुधार होते दिखी। अद्र्धनग्न रहने वाले बिरहोर जाति के तन पर वस्त्र तो चढ़ गए पर सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त नहीं हो सके। समय के साथ ही विकास की रफ्तार धीमी पड़ गई और आज फिर उसी स्थिति में पहुंच गए।

दातून और बेल बेच करते हैं गुजारा  बिरहोर जाति के लोग जंगल से दातून और बेल तोड़कर लाते हैं और फिर आसपास के क्षेत्रों में बेचते हैं। इससे थोड़ी बहुत जो कमाई होती है उससे वस्त्र और गुजर-बसर के सामान खरीदते हैं। एक-दो लोग कभी-कभार कोडरमा में मजदूरी करने जाते हैं।

रंग देखकर रुपयों की करते हैं पहचान  120 लोगों की आबादी वाले इस टोले में स्कूल तो है पर वह कभी-कभार ही खुलता है। टोले में एक भी व्यक्ति साक्षर नहीं है। रंग देखकर रुपयों की पहचान करते हैं। दुनियादारी की कोई समझ नहीं है।

संथाली भाषा में करते हैं बात  विश्व की सबसे प्राचीन और समृद्ध भाषा का ही प्रयोग करते हैं। अन्य लोगों से बात करने में भी संकोच करते हैं। टोले के एक-दो लोग टूटी-फूटी ङ्क्षहदी व मगही मिश्रित भाषा का प्रयोग कर पाते हैं। उनकी बोली आमलोग समझ नहीं पाते हैं।

चापाकल खराब, सामूहिक शौचालय जर्जर  बिरहोर टोले में 11 चापाकल, आगंनबाड़ी केंद्र, प्राथमिक विद्यालय, सोलर सिस्टम सहित अन्य मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई गई थीं पर पदाधिकारियों की शिथिलता के कारण सब सफेद हाथी साबित हो रहे हैंं। नौ  चापाकल में से 8 खराब हो गए। सामूहिक शौचालय की स्थिति जर्जर है।

क्या कहते हैं अधिकारी  बीडीओ कुमुंद रंजन ने कहा कि बिरहोर टोला में समय-समय पर भ्रमण कर उनकी स्थिति का आकलन किया जाता है। कई लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना में नाम दिया गया है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button