Uttarakhand
भू-जल स्तर को सुधारने के लिए भारत सरकार की गाइड लाइन के अनुसार होगा कार्य: महाराज
देहरादून। केंद्रीय जल आयोग द्वारा उत्तराखंड में गिरते भू-जल स्तर पर सदन में विपक्ष द्वारा उठाए गए सवाल पर सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज ने आज सदन को अवगत कराया कि विकासखंड भगवानपुर, बहादराबाद और जनपद नैनीताल के हल्द्वानी विकासखंड एवं जनपद उधम सिंह नगर के काशीपुर एवं खटीमा सहित कुल 5 विकासखंडों को अर्द्ध शोषित क्षेत्र में वर्गीकृत किया गया है। श्री महाराज ने बताया कि इन सभी अर्द्ध शोषित विकासखंडों में भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार जब तक कि वह अर्द्ध शोषित की श्रेणी से बाहर नहीं आ जाते तब तक इन स्थानों पर नये सिंचाई नलकूपों की स्थापना नहीं की जा सकती। सिंचाई मंत्री ने बताया कि जनपद हरिद्वार के विकासखंड भगवानपुर एवं बहादराबाद में भू-जल स्तर में सुधार हेतु केंद्रीय भू-जल बोर्ड भारत सरकार के क्षेत्रीय कार्यालय एवं सिंचाई विभाग द्वारा कार्य योजना का ड्राफ्ट तैयार किया गया है, जिनमें उच्च स्तर एवं अन्य विभागों से सुझाव एवं सहमति लिए जाने के पश्चात विस्तृत कार्य योजना तैयार की की जायेगी। उक्त प्रस्तावित ड्राफ्ट में कृषकों को फसल पैटर्न मैं बदलाव हेतु प्रोत्साहित करते हुए अधिक जल उपयोग वाली फसलों जैसे धान, गन्ना के स्थान पर ऐसी नगदी फसलों, बागवानी हेतु तैयार करना है जिसके लिए जल की आवश्यकता काम हो। कृषकों को बाड़ सिंचाई के स्थान पर उंचाई वाली जगह पर तालाब बनाकर सिंचाई हेतु प्रोत्साहित किया जाएगा जिससे जल की हानि कम से कम हो। सिंचाई मंत्री श्री सतपाल महाराज ने बताया कि सिंचाई हेतु उपयोग लाये जाने वाले अन्य साधनों जैसे ड्रिप, स्प्रिंकलर सिस्टम को अपनाया जाना भी प्रमुख है। उन्होंने बताया कि प्रभावित क्षेत्र में स्थित जल निकायों जैसे ताल-तालाब का पुनर्जीवीकरण एवं पुनरोद्धार किया जाना भी प्रस्तावित है। उन्होने कहा कि क्षेत्र में प्रवाहित होने वाले नालों एवं नदियों पर भूजल स्तर में वृद्धि हेतु कृत्रिम जल पुर्नभरण संरचना के तहत छोटे चेक डैम आदि अन्य सुविधाओं का निर्माण प्रस्तावित है। महाराज ने सदन को अवगत कराया कि क्षेत्र में आवासीय एवं अनावासीय भवनों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग संरक्षण संरचनाओं का निर्माण किए जाने हेतु ड्राफ्ट तैयार किया गया है, इसके अलावा क्षेत्र में अव्यवस्थित उद्योगों में जल की आवश्यकता को कम करते हुए उपयोग किए गए जल को रिसाइकल कर पुनः उपयोग किए जाने तथा रेन वाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य किया जाना है।