Uttarakhand
भीख – एक अभिशाप
सरकार के कानून के अनुसार भीख मांगना एक अपराध है। लेकिन यह क्या शहरों के सभी चौराहे, लालबत्ती स्थान, बाज़ार की सड़कें और गली मुहल्ले में भीख मांगने वाले देखे जा सकते है जिनमे ज्यादातर पेशेवर भिकारी होते है जो प्रतिदिन उसी स्थान पर दिखाई देते है।
ये लोग कहां रहते है कहाँ से आते है शायद ही कोई जानता हो। पुलिस यदा कदा कार्यवाही करती है लेकिन कोई प्रभाव नही पड़ता और धंधा फिर यथावत जारी हो जाता है।
कुछ लोग तो इनके फ़ोटो खींचकर भारत की छवि विदेशों में खराब करते है। यही नही यह संगठित धंधा अपहरण और ड्रग्स के धंधे में भी लिप्त रहता है। कुल मिलाकर दया के आधार पर यह धंधा सुनियोजित उद्योग बन चुका है।
हम मानते है कि भूखा भीख मांगने के लिये बाध्य हो जाता है सिर्फ अपना पेट भरने के लिये लेकिन वही भीख अगर शाम को नशा करने, एक हिस्सा ठेकेदार को पहुँचाने रात में जनसंख्या बढ़ाने में काम आए तो देश के लिये इससे बुरी स्थिति कोई हो नही सकती। सरकार ने कानून बनाया है तो उसका किर्यान्वन भी होना चाहिए। कही कोई कमी है तो उसमें सुधार होने चाहिए।
हमारा सुझाव है कि सरकार हर भूखे का पेट भर रही है। बहुत सारी सामाजिक संस्थाएं भी इस कार्य में बड़ा योगदान दे रही है फिर भीख की आवश्यकता कहाँ है? सरकार को चाहिये कि प्रत्येक शहर में भिखारी शेल्टर होम बनाकर सभी भिखारियों को पकड़कर वहां शिफ्ट कर देना चाहिए और सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से उनका पुनर्वास करना चाहिये साथ ही अभियान चलाकर भीख मांगने के विरुद्ध न केवल सख्त कदम उठाने चाहिए बल्कि इससे संबंधित माफिया पर भी नकेल कसनी चाहिए। देश हित मे भिखारियों की आवश्यक नसबंदी भी कर देनी चाहिए जिससे भविष्य में भिखारियों की संख्या न बढ़े। ड्रग्स का धंधा भी कम हो जाएगा।
क्या सरकार इस और ध्यान देकर इस सामाजिक बुराई को समाप्त करने का प्रयास करेगी?
लेखकः-ललित मोहन शर्मा