भारतीय संविधान हमारे लिए सर्वोच्च है और उसका प्रमुख हमारे राष्ट्रपति होते हैं:- शिवाजीराव मोघे
दिल्ली। शिवाजीराव मोघे ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि मैं अखिल भारतीय आदिवासी कांग्रेस का चेयरमैन होने के नाते एक आदिवासी के लिए, एक महिला के लिए, लोकशाही के लिए दुर्भाग्यपूर्ण घटना, जो 28 तारीख को होने वाली है उसके बारे में मैं दु:ख और दर्द बताने के लिए आपके सामने आया हूं। आप आए, उसके लिए मैं आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूं।
देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू हैं और हमने सुना है, पत्रिका भी निकल चुकी है, संसद भवन का उद्घाटन माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी करने जा रहे हैं। शुरू में ही ये बोल देता हूं मैं ये लोकशाही का अपमान है, हमारी आदिवासी, प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया, आदिवासी महिला पहली बार हैं, इस देश की महिला का भी अपमान है और आदिवासी का भी अपमान है, लोकशाही का भी अपमान है तो इसके बारे में मैं बातें बताना चाहता हूं।
आपको जब मालूम है भारतीय संविधान हमारे लिए सर्वोच्च है और उसका प्रमुख हमारे राष्ट्रपति होते हैं तो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 79 में लिखा है कि संघ के लिए एक संसद होगी, जिसमें राष्ट्रपति और सदन लोकसभा और राज्य सभा होंगी। तो ये संसद इन तीनों से मिलकर बनती है और दूसरी बात ये संसद सत्र जब चालू होता है या बंद होता है तो माननीय राष्ट्रपति की अनुमति से ही होता है, इतना इम्पोर्टेंस इस संसद के भवन से है। दूसरा ये कि ये देश के तीनों सेना दलों की राष्ट्रपति हमारी हैड है तो संसद भवन का उद्धाटन माननीय राष्ट्रपति के कर कमलों द्वारा होना चाहिए और हम आदिवासी हैं, इसलिए नहीं हो रहा है कि क्या हो रहा है ये मुझे समझ में नहीं हो रहा है।
तो उनके हक में न होते हुए, ये माननीय प्रधानमंत्री के हाथ से हो रहा है ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बात है, पहले भी ऐसे हुआ था, रामनाथ कोविंद साहब जो हमारे राष्ट्रपति दिसंबर 2020 में जब इसी संसद भवन का भूमि पूजन जब हुआ था तो उस समय पर दिसंबर 2020 में उस टाइम पर रामनाथ कोविंद जी हमारे राष्ट्रपति थे उनको भी भूमिपूजन के लिए नहीं बुलाया था, तो दोनों टाईम पर प्रधानमंत्री माननीय मोदी जी थे, यही केन्द्र शासन था। तो इनकी नीयत बैकवर्ड क्लास के खिलाफ है, बैकवर्ड क्लास को अपमानित करने की है, ऐसा मुझे लगता है और हम आदिवासी लोग पूछ रहे हैं कि ऐसा क्या हुआ, ऐसा क्यों हुआ कि आदिवासी को इस देश के जो भारतीय संविधान ने जो हमको संरक्षण दिया है शेड्यूल कास्ट और शेड्यूल ट्राइब्स को उसको अपमानित करने का काम क्यों किया? तो उसके लिए हम आपसे बातचीत करने वाले हैं और ये केन्द्र में शासन प्रधानमंत्री मोदी जी का है, ये अनुसूचित जाति, जनजाति के बारे में ऐसी उनकी मानसिकता क्यों बनी हुई है – इसलिए बनी हुई है कि ये आदिवासी क्या है? ये शेड्यूल कास्ट क्या है, इनको कौन पूछता है, क्या मानसिकता से इम्पोर्टेंस नहीं दिया, ये हम आदिवासी लोगों में चर्चा चालू है।
दूसरा ऐसा है कि सबसे महत्वपूर्ण बात जो मैं देख रहा हूं… देश के 20 समान विचारधारा वाले विपक्ष, कम नहीं, कल तो 18 थे, आज 20 हो गए। देश के 20 समान विचारधारा वाले विपक्षी दलों द्वारा संयुक्त निवेदन किया है, क्या कहा है उन्होंने – हम इस निरंकुश प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के खिलाफ शब्दों और भावनाओं में लड़ना जारी रखेंगे और अपना संदेश सीधे भारत के लोगों तक जाएगा ऐसी उनकी कोशिश है। तो ये सब लोग इतने बड़े पैमाने पर कर रहे हैं तो कुछ तो है इसमें, लेकिन माननीय प्रधानमंत्री क्यों नहीं समझ रहा है, लेकिन इतनी चर्चा है हम कार्यकर्ता आदिवासी की हम सोचते हैं कि भाई देश के आदिवासी सोच रहे हैं कि माननीय प्रधानमंत्री बोले क्यों नहीं, बोलो कि हम ये कानून लाए हैं, हम चाहे कुछ भी कर सकते हैं, कुछ तो बोलना चाहिए न। माननीय प्रधानमंत्री को 20-20 अपोजिशन वाली पार्टी उनको बोल रही है कि ये गलत है, फिर भी माननीय प्रधानमंत्री कुछ नहीं बोल रहे। ये डेमोक्रसी के खिलाफ बात है, वैसे भी प्रेस में बोलना नहीं चाहते तो किसी और माध्यम से भी कुछ तो बात कहीं बोलते न। क्या है कि वो आदिवासी के बारे में बोलना नहीं चाहते हैं, दलित के बारे में बोलना नहीं चाहते हैं, कुछ भी नहीं होता है ऐसी उनकी मैंटेलिटी ये भी देश के लिए घातक है ऐसा मुझे लगता है। खासतौर पर ये मैंटेलिटी आज की बनी नहीं है, ये आदिवासी के बारे में मैं बताता हूं। फोरेस्ट राइट एक्ट, 2006 जब मनमोहन साहब प्रधानमंत्री थे, मैडम सोनिया गांधी ने खासतौर पर ये ऐसा एक्ट लाया है। अब देखो, सारे देश में जहां भी फोरेस्ट है वहां आदिवासी है और जो फोरेस्ट आदिवासी ने लगाया है और ज्यादातर 95 परसेंट आदिवासी ही जतन कर रहे हैं, आज देश में जो फोरेस्ट हैं, हम कितनी तकलीफ में रहते हैं कि जंगलो में क्या रहता है, शेर है, सब बातें होने के बाद हम वहां रहते हैं तो उसके लिए कानून बनाया कि जिनका भी कब्जा है उसको रेगुलर करने का कानून बनाया है, 2006 में बनाया है, उसके…. लेकिन जहां-जहां बीजेपी की सरकार हैं, वहां इसकी पालना नहीं हो रही है और जहां बाकी सरकारें हैं वहां ठीक तरह से हो रही है कुछ जगह, लेकिन जहां-जहां बीजेपी है ये जानबूझकर करते है मालूम नहीं, आदिवासी के बारे में कानून तो कुछ अच्छा करते नहीं, जो कानून है उसकी पालना करते नहीं।
देखो अभी उन्होंने क्या किया…. इसका एक प्रावधान ऐसा है कि जिन्होंने भी अतिक्रमण किया है, जो भी आदिवासी, गरीब लोग जिन्होंने अतिक्रमण किया है उसका पहला रेजोल्यूशन ग्राम सभा का रहता है, गांव की ग्राम सभा, कितना किया है, किसने किया है, सही किया, फिर एसडीओ के पास इसका फैसला होता है, नहीं फैसला उनके पास हुआ तो कलेक्टर को अपील करते हैं ऐसा प्रोसीजर है, लेकिन ये जो फोरेस्ट, शेड्यूल एरिया में ऐसा कानून है कि जब तक गांव वाले करते रहें, कुछ भी नहीं होता, तो अब ये ग्राम सभा वाले उसको खत्म करके ये खदानों के ठेकेदारों को वो जमीन देने का काम ये बीजेपी वाले कर रहे हैं, पहले जमाने में ऐसा हुआ नहीं करता था तो ये हम समझते हैं कि आदिवासी के खिलाफ में हैं और दूसरी बात ये है पेसा एक्ट एक बनाया है, पेसा….शेड्यूल एरिया रहता है, वो 1996 में ये कानून बना है, इस कानून के अंदर आदिवासी को खास अधिकार दिए हुए हैं तो जहां जहां भी जो बीजेपी के स्टेट हैं इनका अमल वहां हो नहीं रहा है तो जो-जो बातें हैं इनसे लगता है कि ये सिर्फ संसद भवन के उद्धाटन का नहीं है, वैसे भी आदिवासियों को वो इम्पोर्टेन्स देते नहीं हैं।
लेकिन सबसे सीरियस बात है, माननीय राहुल जी ने भी अभी ये बिरसा मुंडा हम भगवान मानते हैं पूरे देश के, जितने भी 6000 जाति हैं हमारी बिरसा मुंडा को हम भगवान मानते हैं, पूरे गांव-गांव में हम भगवान बिरसा मुंडा को मानते हैं। तो राहुल जी की जब पदयात्रा चल रही थी तो वो ऐसे किसी को कार्यक्रम नहीं देते, 74वां दिन जिस दिन बिरसा मुंडा की जयंती, उन्होंने हमको कार्यक्रम दिया, एक अकेला कार्यक्रम था जो उन्होंने हमको दिया, बाकी जो उनके डिसाइड कार्यक्रम थे, वही हुए होंगे।
तो हमने सवाल पूछा था उनको कि भाई ये बाकी कोई पक्ष वाले या कोई पंथ वाले हमको वनवासी नहीं बोलते, लेकिन ये बीजेपी वाले हमको वनवासी बोलते हैं आपको मालूम है कि वनवासी बोलते हैं, राम को वनवास हुआ था यानि पनिशमेंट है तो हम ऑल इंडिया के कई संगठनों ने बोला कि भाई ये शब्द मत यूज करो, क्योंकि ये क्या करते हैं वनवासी आश्रम, वनवासी कल्याण आश्रम या वनवासी स्कूल, ये सिर्फ बीजेपी वाले करते हैं, ये आरएसएस, बीजेपी वाले करते हैं, तो हम बोलते हैं ऐसा क्या है, हमको गाली देने में तुम्हें क्या खुशी है। तो राहुल जी ने बोला था ये बिल्कुल गलत है, हम जब सारे आदिवासी नहीं बोलते… तुम ही यूज करते हो, लेकिन ये जान-बूझकर करते हैं ऐसा हमको लगता है, इतना बोलने के बाद भी 100-200-500 संस्था होगी उसकी, उनका नाम निकाल सकते हैं न, कल जब ये कानून आया तो नहीं निकालेंगे न, जैसे पहले हरिजन शब्द था उसको कानून ने बंद दिया न तो नहीं करते क्यों – क्योंकि उनको आदिवासी की आवाज हीं नहीं सुनाई देती, आदिवासी का दु:ख दर्द हीं नहीं, आदिवासी को गाली लगती है वो भी नहीं समझता है तो ये सब बातें कर रहे हैं और हमारा ये भी सवाल है कि माननीय प्रधानमंत्री इतने लोग आवाज उठा रहे हैं तो ये क्यों नहीं उसका जवाब दे रहे हैं कि तुम्हारा गलत है, आदिवासी तुम्हारा गलत है,… हमारा सही है वो ऐसा क्यों नहीं बोलते, नहीं तो वो उनको प्रेस वालों को नहीं बोलते, कभी प्रेस के सामने नहीं जाते हो, वो तो उनके हाथ में हैं, उनको बोलने का, हालांकि बोलते नहीं।
तो आखिरी में ये हमारा कहना है कि कल हम पूरे देश में ब्लॉक लेवल पर, गांव लेवल पर, जिला लेवल पर ये माननीय केन्द्र शासन और माननीय प्रधानमंत्री का ये आदिवासी को अपमान करने का, देश की महिलाओं को अपमानित करने का, लोकशाही को अपमानित करने का जो 28 तारीख को वो खुद उसका उद्धाटन कर रहे हैं, उद्धाटन न करते हुए माननीय राष्ट्रपति के हाथ से वो उद्धाटन करें, वो उनके हाथ में है कोई उसकी कोई घटनात्मक बात थोड़ी रहती, वो बोल सकते हैं कि मैं नहीं ये करेंगे, ये इतना बड़प्पन दिखा सकते हैं क्या? मुझे मालूम नहीं दिखाएंगे, लेकिन सारे 20 विपक्षी दल पार्टी हैं उनको लगता है कि अभी टाईम नहीं गया है, अभी भी माननीय प्रधानमंत्री अपना विचार बदलकर उनके हाथ से करें, क्योंकि वो मेंबर करके नहीं बुला सकते तुम, क्योंकि वो कोंस्टिट्यूशनल हेड हैं उनके हाथ से होना चाहिए तो ये करेंगे। अगर नहीं करते हैं तो कल हम देश में उसका एक प्रोटेस्ट के तौर पर पूरे ब्लॉक, जिला लेवल पर हम आदिवासी लोग उसका निषेध करने वाले हैं और केन्द्र शासन जो हमारे खिलाफ नीतियां कर रही है उसका भी हम विरोध करते हैं, हमको अपमानित करने का उनको कोई अधिकार नहीं। जब उस पोस्ट पर, ये पोस्ट उनके लिए राजनीति करने के लिए, हम राष्ट्रपति बनाकर मतदान के लिए करने के लिए दिया, ऐसा लगता है हमको, ये तुम पॉलिटिकल वोट मिले तुमको इसलिए बनाया है, ऐसा हमको लगता है तो हम ये अगर होता है तो हम, हमारे दिल में ये जैसा कि उनका संसद भवन का उद्घाटन माननीय प्रधानमंत्री ने किया है, वो जैसा उनके दिल में हमेशा रहेगा, लेकिन ये दु:ख दर्द है हमारी आदिवासी महिलाओं के दिल में आखिरी तक रहेगा, ऐसा हमारा कहना है और कल हम उसका प्रोटेस्ट पूरे देश में कर रहे हैं, इसके लिए आपको बुलाया था।