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भारतीय मुसलमानों को नागरिकता संशोधन कानून से कोई लेना-देना नहीं हैः-सैयद अहमद बुखारी

सैयद अहमद बुखारी। प्रदर्शन करना लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन इस दौरान संयम बरता जाना चाहिए और भावनाओं पर नियंत्रण रखना भी अहम है। नागरिकता कानून का भारत में रहने वाले मुस्लिमों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इसका असर पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश शरणार्थियों पर पड़ेगा। नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी में फर्क है। एक नागरिकता संशोधन एक्ट है जो कि कानून बन चुका है और दूसरा एनआरसी है, जिसका अभी एलान ही किया गया है। नागरिकता कानून के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले मुस्लिम शरणार्थी भारत की नागरिकता नहीं ले पाएंगे। इसका भारत में रहने वाले मुस्लिमों से कोई लेना-देना नहीं।

      अभी जब नमाज हो रही थी तो मैंने देखा कि एक तरफ नमाज हो रही थी दूसरी तरफ पीछे से नारे लग रहे थे। हम एक मकसद को लेकर यहां एकत्र हुए हैं। जब तक बुनियादी चीजों को हम नहीं समझेंगे, तब तक हम कैसे कामयाब होंगे। कोई भी तहरीर तब तक सफल नहीं होती जब तक कि जिम्मेदारों को ना जोड़ा जाए। मैंने सुना है कि दुकानें बंद कराई जा रही है। पहले बैठकें होती थी, जिसमें इलाके के मौलाना, पार्षद, विधायक समेत आम लोग शामिल होते थे। कौन दायें चलेगा, कौन बायें चलेगा, से लेकर कौन उपद्रवी लोगों को कार्यक्रम में शामिल ना होने देने की निगरानी करेगा, यह बैठकों में तय किया जाता था। लेकिन आज पूरे देश में प्रदर्शन हो रहे हैं। प्रदर्शन संयमित होना चाहिए।

      70 साल हो गए मुल्क में अपने हक की आवाज बुलंद करते हुए। हमने कुर्बानियां भी दीं लेकिन हक नहीं मिला। हर सियासी जुबान ने मुसलमानों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया, वादे किए और सत्ता हासिल कर ली, लेकिन उसके बाद हमसे मुंह फेर लिया। ऐसा कोई भी सियासी दल नहीं है, जिसने मुसलमानों के साथ इंसाफ किया हो। मैंने इस कानून को लेकर कई लोगों से बात की। अधिकतर को पता ही नहीं कि यह कानून किस बारे में है। कई ने कहा कि मुसलमानों को हिंदुस्ताान से बाहर भेजा जा रहा है। यह समझना होगा कि कानून में नागरिकता की बात हो रही है। लेकिन युवाओं को यह डर है कि उन्हें हिंदुस्तान से बाहर भेज दिया जाएगा।हकीकत में नागरिकता कानून एनआरसी से अलग है और भारत के मुसलमानों से संबंधित नहीं है।

(शाही इमाम, जामा मस्जिद)

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