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भाजपा की प्रचंड जीत के पीछे थी ठोस रणनीति

नई दिल्‍ली । दोबारा पहले  से भी बड़ी जीत हासिल कर सत्ता में आने का भाजपा दावा कर रही थी तो उसके पीछे पक्की रणनीति भी थी। करीब चार साल पहले ही इसका खाका तैयार किया जाने लगा था और कमान खुद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अपने हाथ में रखी थी। उन्होंने जिन 120 सीटों को लेकर खास रणनीति तय की थी उनमें पश्चिम बंगाल और ओडिशा विशेष थे। बताया जा रहा है कि इन 120 में से एक तिहाई से कुछ ज्यादा सीटें आज भाजपा की झोली में हैं। दरअसल, शाह ने इसकी तैयारी काफी पहले शुरू कर दी थी। सदस्यता के विस्तार के लिए जब अभियान चल रहा था तब गुजरात से आने वाले अमित शाह 2015 में ओडिशा से सक्रिय सदस्य बने और खुद से 129 सदस्यों को जोड़ा। ओडिशा में खुद की मौजूदगी स्थापित कर विस्तार का काम उन्होंने तभी शुरू कर दिया था और उसके बाद लगातार कई दौरे किए। केंद्रीय कार्यालय की जिम्मेदारी देख रहे महासचिव अरुण सिंह को वहां प्रभारी नियुक्त किया और यह भी सुनिश्चित किया कि उनका प्रवास वहां बना रहे। डेढ़ साल पहले पंचायत चुनाव में उसका असर दिखा था जब भाजपा ने बड़ी जीत हासिल की थी। लोकसभा में पिछली बार के मुकाबले भाजपा ने सात सीटें ज्यादा जीतीं। पिछली बार सिर्फ एक सीट जीत पाई थी। लोकसभा में सीटों की संख्या की दृष्टि से तीसरे नंबर पर खड़े पश्चिम बंगाल में उन्होंने तीन साल पहले संयुक्त संगठन मंत्री शिव प्रकाश के साथ-साथ अपने तेज तर्रार महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को तैनात किया। एक वक्त आया जब शाह स्वाइन फ्लू से पीड़ित हो गए थे और दो दिन बाद पश्चिम बंगाल में उनकी रैली थी। तब स्थानीय नेतृत्व ने तय किया कि रैली रद करने की बजाय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बुलाया जाए, लेकिन शाह नहीं चाहते थे कि जिस चुनाव को वह ममता विरोधी बनाना चाहते हैं वह केवल हिंदुत्व पर सीमित हो जाए। लिहाजा बीमारी की हालत में ही वह मालदा पहुंचे और चुनावी मुद्दा तय कर दिया। तुष्टीकरण जाहिर तौर पर वहां मुद्दा बना, लेकिन शाह ने यह सुनिश्चित किया कि ममता विरोधी लहर का फायदा उठाया जाए।  डेढ़ महीने के चुनाव अभियान के बाद भाजपा वहां दो से बढ़कर 18 हो गई है। इसी तरह तेलंगाना में एक सीट की बजाय भाजपा ने चार सीटें जीती हैं। दरअसल, ढाई साल पहले भाजपा ने ‘ऑपरेशन कोलोमंडल’ का खाका तैयार किया था जिसमें तटीय राज्यों पर नजरें जमाई गई थीं।

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