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बालिका गृह यौनशोषण मामले की जांच अब सीबीआइ के हवाले

पटना । बिहार में मुजफ्फरपुर बालिका गृह यौनशोषण मामले की जांच सीबीआइ को सौंपी गई है और टीम ने इसकी जांच शुरू कर दी है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या इस हाई प्रोफाइल मामले की पीड़ित बच्चियों को सीबीआइ इंसाफ दिलवा पाएगी? यह सवाल इसलिए कि मुजफ्फरपुर के ही नवरुणा हत्याकांड मामले में सीबीआइ निर्धारित अवधि तक कोर्ट में आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट नहीं दाखिल कर सकी, जिसकी वजह से इस हत्याकांड के आरोपितों को जमानत मिल गई है। बालिका गृह मामले के तार रसूखदारों से जुड़ने की बात सामने आ रही है। इसे लेकर पूरे देश की नजर इस कांड के उद्बेदन के बाद दोषियों को सजा मिलने पर टिकी है। हर कोई चाहता है कि बच्चियों का शारीरिक और मानसिक शोषण करने वाले दोषियों को जल्‍द से जल्‍द सजा मिले। सीबीआइ को जांच सौंपने के बाद इसकी उम्‍मीद भी की जा रही है। लेकिन आपको बता दें कि इससे पहले सीबीआइ कई मामलों में खाली हाथ रही है। यहां तक की आलम ये रहा है कि कई मामलों में सीबीआइ अपने अंजाम तक नहीं पहुंच पाई। कई मामलों में सीबीआइ कोर्ट द्वारा दिए गए समय में चार्जशीट भी दाखिल नहीं कर सकी। कुछ मामले ऐसे भी हैं जहां पर सीबीआइ को मामला ही बंद कर देना पड़ा। कुल मिलाकर कहीं न कहीं ये इस जांच एजेंसी की नाकामी को भी दर्शाते दिखाई देते हैं। देशभर में ऐसे मामलों की लिस्‍ट काफी लंबी है जो सीबीआइ को सौंपे जाने के बाद भी अपने अंजाम तक नहीं पहुंच सके। बिहार के ही कई हाई प्रोफाइल मामले इसी लिस्‍ट का हिस्‍सा हैं।

नवरुणा हत्याकांड, नाकाम रही सीबीआइ  18 सितंबर 2012 की रात मुजफ्फरपुर के जवाहरलाल रोड स्थित अपने घर में सो रही लड़की नवरुणा के कमरे की खिड़की का ग्रिल तोड़कर उसका अपहरण किया गया था। अपहरण के ढाई महीने बाद उसके घर के पास के नाले की सफाई के दौरान एक मानव कंकाल मिला था। डीएनए जांच में इस कंकाल के नवरुणा के होने की पुष्टि हुई थी। इस बहुचर्चित मामले की सबसे पहले पुलिस ने और फिर सीआइडी ने जांच की थी, लेकिन कोई इस केस को सुलझाने में सफल नहीं हुआ। मामले की सीबीआई जांच से कराए जाने की हर तरफ से मांग उठने के बाद बिहार सरकार ने सितंबर 2013 में इसकी जांच सीबीआई को सौंप दिया था। नवरुणा के माता-पिता ने अपनी बेटी की हत्या भू-माफिया द्वारा उनकी जमीन हड़पने की नीयत से किए जाने का आरोप लगाया था। इस मामले की जांच फरवरी 2014 से सीबीआई द्वारा की जा रही थी, जिसमें सीबीआइ इस हत्याकांड के आरोपितों को सजा नहीं दिलवा सकी।

बॉबी हत्याकांड, गुत्थी रह गयी थी अनसुलझी  तीन दशक पहले बिहार विधानसभा सचिवालय में क्लर्क के पद पर कार्यरत महिला श्वेत निशा उर्फ बॉबी की हत्या ने तत्कालीन कांग्रेस की सरकार की नींव हिला कर रख दी थी़। तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉक्टर जगन्नाथ मिश्र को जबरन इस केस की जांच सीबीआई को सौंपनी पड़ी थी क्योंकि इस मामले में कई रसूखदार शामिल थे। बॉबी की हत्या के बाद जगन्नाथ मिश्रा को उनके ही दल के करीब सौ विधायकों ने सरकार गिराने की धमकी दी थी। बता दें कि श्वेत निशा उर्फ बॉबी के संबंध उन दिनों के बड़े कांग्रेसी नेताओं से रहे थे और साजिश रच उसकी हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड की जांच कर रही सीबीआइ  हत्यारों तक  नहीं पहुंच पायी और जांच टीम ने उसे आत्महत्या करार दिया था।

शिल्पी-गौतम हत्याकांड  बिहार की सनसनीखेज हत्या की ये घटना तीन जुलाई,1999 की है। पटना में गांधी मैदान थाना क्षेत्र के एक बड़े बंगले के गैराज में एक युवक और युवती का शव बरामगद हुआ तो पुलिस इसे प्रेम प्रसंग में की गई आत्महत्या समझकर जांच कर रही थी। लेकिन 23 साल की युवती और करीब 28 साल के युवक का शव इस अवस्था में मिला था और हत्या की तह में बात कुछ और ही सामने आई थी जिसने इसकी जांच में लगे पुलिस के आला अधिकारियों की नींद उड़ा दी थी। इस केस में भी बड़े रसूखदारों के नाम जुड़ने लगे जिसमें तत्कालीन सत्ता पर काबिज नेताओं के संबंधियों के शामिल होने की बात सामने आने लगी थी। इस केस में दो सांसद व कुछ विधायकों के नाम भी चर्चा में रहे थे। उन दिनों प्रदेश में राजद की राबड़ी देवी की सरकार थी। घटना को लेकर विपक्ष ने राजद सरकार को घेरने की रणनीति बनायी। घटना को लेकर विपक्षी पार्टियों के धरना, बंद और प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया।  इसके दो महीने बाद सरकार ने मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया़।  लेकिन, चार साल तक चली सीबीआइ जांच का कोई नतीजा सामने नहीं आया। सीबीआई ने तत्कालीन एक सांसद से कई बार पूछताछ की। लेकिन, सीबीआइ को इसका कोई  सबूत नहीं मिला। आखिरकार, एक अगस्त 2003 को सीबीआई ने फाइनल रिपोर्ट कोर्ट में पेश की और केस बंद कर दिया गया।बरमेश्वर मुखिया हत्याकांड, अभी तक नहीं सुलझी गुत्थी रणवीर सेना सुप्रीमो बरमेश्वर सिंह मुखिया की हत्या की घटना के छह साल गुजरने के बाद भी सीबीआइ अभी तक किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पायी है। सीबीआइ ने मुखिया के कातिलों के बारे में सुराग पाने के लिए दस लाख रुपये का इनाम तक देने तक की घोषणा भी की। लेकिन, निष्कर्ष बेनतीजा निकाला। रणवीर सेना सुप्रीमो बरमेश्वर सिंह मुखिया की हत्या को लेकर सीबीआइ ने मुख्य रूप से तीन बिन्दुओं पर जांच की थी। जिसमें हथियार संबंधी विवाद, संगठन के अंदर वर्चस्व से लेकर भाकपा-माले से चली आ रही प्रतिशोध की लड़ाई से जोड़कर जांच की गयी थी। पूर्व में संगठन के अंदर हुई हत्याओं को भी आधार मान तफ्तीश चली थी।

कौन थे बरमेश्वर मुखिया  भोजपुर ज़िले के खोपिरा गांव के रहने वाले मुखिया को रणवीर सेना का प्रमुख कहा जाता है। इस सेना की खूनी भिड़ंत अक्सर नक्सली संगठनों से हुआ करती थी। जिसमें चर्चित लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार जो एक दिसंबर 1997 को हुआ था जिसमें 58 दलित मारे गए थे। इसमें मुखिया को मुख्य अभियुक्त माना गया था। कहा जाता है कि इससे पहले नक्सली संगठनों ने बाड़ा नरसंहार के तहत 37 ऊंची जाति के लोगों की हत्या कर दी थी। बाथे नरसंहार को बाड़ा नरसंहार का बदला कहा गया था, इसमें मुखिया पर कार्रवाई भी की गई थी। बाद में बिहार सरकार ने रणवीर सेना पर प्रतिबंध लगा दिया था।

सृजन घोटाला, जिसके मुख्य आरोपी अबतक नहीं हुए गिरफ्तार पिछले साल भागलपुर में करोड़ों रुपये के हुए सृजन घोटाले के उजागर होने के बाद काफी हंगामा हुआ। ‘सृजन महिला विकास सहयोग समिति’ नाम के एनजीओ से करोड़ों रुपये के हेरफेर की बात सामने आने के बाद बैंकों से पैसों के ट्रांसफर के खेल का पर्दाफाश हुआ। उसके बाद कई भाजपा नेताओं के फ़ोटो और वीडियो सामने आए और तमाम तरह के आरोप-प्रत्यारोप लगे। विपक्ष के हंगामे के बाद राज्य सरकार ने 18 अगस्त को इस मामले की जांच सीबीआई से कराने का फ़ैसला   लिया। लेकिन सीबीआई ने इस मामले के दो मुख्य आरोपियों सृजन की सचिव प्रिया और उसके पति अमित, जिनकी स्वर्गीय मां मनोरमा देवी इस घोटाले की सृजनकर्ता थीं, को आज तक गिरफ़्तार नहीं कर पाई है। सृजन घोटाले में सीबीआइ ने कई आरोप पत्र दायर किए, मामले की जांच जारी है।

बालिका गृह यौनशोषण मामला, सीबीआइ की जांच जारी बिहार के मुजफ्फरपुर के बालिका गृह में बच्चियों के यौनशोषण मामले की जांच अब राज्य सरकार ने सीबीआइ के हवाले किया है। बता दें कि मुजफ्फरपुर बालिका गृह यौनशोषण कांड में 42 बच्चियों में से 34 बच्चियों के साथ दुष्कर्म की पुष्टि हुई है।

कोशिश संस्था ने मामला किया उजागर  टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस की कोशिश नाम की संस्था ने अपनी जांच रिपोर्ट में बताया था कि बालिका गृह में रह रही बच्चियों का यौन उत्पीड़न किया जा रहा है। बच्चियों की स्थिति ठीक नहीं है। इसके बाद मामला लाइमलाइट में आया और इस घटना की परत-दर-परत खुलती गई। इसमें मंत्री और अधिकारियों पर आरोप लगे। बिहार विधानमंडल के मानसून सत्र और संसद में विपक्षी दलों ने इस मामले को सदन में उठाया जिसपर केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि राज्य सरकार अनुशंसा करे तो इसकी सीबीआइ जांच करवायी जाएगी। लेकिन, बिहार के पुलिस महानिदेशक केएस द्विवेदी ने कहा था कि मैं अपनी जांच से पूरी तरह संतुष्ट हूं। मुझे इसमें कोई खामी नजर नहीं आ रही। इसलिए नहीं लगता कि सीबीआई या अन्य किसी एजेंसी द्वारा जांच किए जाने की आवश्यकता है। लेकिन विपक्ष के कड़े तेवर और मामले की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री ने सीबीआइ जांच के निर्देश दिए। इस संस्था का कर्ता-धर्ता ब्रजेश ठाकुर बताया गया है और ये बात भी पता चली है कि उसकी पहुंच काफी ऊपर तक है। कई रसूखदार उसके साथ मिले हुए हैं। मामले में समाज कल्याण मंत्री और उनके पति पर भी आरोप लगे, जिसे मंत्री ने खारिज कर दिया। बच्चियों ने जो दर्दनाक दास्तां बताई है उसके आधार पर जांच आगे चल रही है।

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