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बी चंद्रकला पर भी अवैध खनन में शामिल होने और मनमाने तरीके से खनन के पट्टे बांटने का है आरोप

नई दिल्ली । यूपी कैडर की IAS बी चंद्रकला, सोशल मीडिया पर लाखों फॉलोअर्स, एक चहेती, तेज तर्रार और ईमानदार अधिकारी से अचानक एक ‘भ्रष्ट’ अधिकारी की श्रेणी में आ गई हैं। पिछले दस वर्षों में उन्होंने जो शोहरत कमाई थी, वह एक झटके में चली जाएगी, ऐसा आइएएस अधिकारी बी चंद्रकला ने भी नहीं सोचा होगा। बहुत से लोगों का मानना है कि अवैध खनन मामले में बी चंद्रकला समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ हो रही कार्रवाई, राजनीति से प्रेरित है। इस खबर में हम आपको इसकी वास्तविकता बताएंगे। इससे पहले आपके लिए ये जानना भी जरूरी है कि अवैध खनन मामले में ही क्यों यूपी की अखिलेश सरकार ने आईएएस अधिकारी बी चंद्रकला समेत अन्य आरोपियों को बचाने का प्रयास किया था। चंद्रकला यूपी सरकार में कई जिलों की डीएम रहीं थीं। उन्हें सपा का करीबी भी माना जाता है।

क्या है अवैध खनन मामला  अवैध खनन का ये मामला सपा सरकारी में वर्ष 2012 से 2016 के बीच का है। अवैध खनन के इस खेल का भंडाफोड़ करने के लिए 2016 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में दो याचिकाएं दायर की गईं थीं। इन पर सुनवाई करते हुए 28 जुलाई 2016 को हाईकोर्ट ने जांच के आदेश दिए थे। हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआइ ने मामले की जांच शुरू की तो उसे वर्ष 2012 से 2016 तक हमीरपुर जिले में बड़े पैमाने पर अवैध खनन के सबूत मिले। अवैध खनन से सरकार को बड़े पैमाने पर राजस्व की क्षति पहुंचाई गई थी। उस वक्त चर्चित आइएएस अधिकारी बी चंद्रकला हमीरपुर की जिलाधिकारी थीं। उन पर भी अवैध खनन में शामिल होने और मनमाने तरीके से खनन के पट्टे बांटने का आरोप हैं।

2017 में भी चंद्रकला से हुई थी पूछताछ  हाईकोर्ट के आदेश पर अवैध खनन मामले की जांच कर रही सीबीआइ ने हाल में छापेमारी की कार्रवाई करने से पहले वर्ष 2017 में भी IAS बी चंद्रकला से इसी मामले में पूछताछ की थी। इसके अलावा सीबीआई उसी दौरान प्रमुख सचिव (खनन) रहे डॉ गुरुदीप सिंह से भी मामले में पूछताछ कर चुकी है। मालूम हो कि हाईकोर्ट खुध सीबीआइ जांच की निगरानी कर रही है और वक्त-वक्त पर जांच की प्रगति रिपोर्ट लेती रहती है। हाईकोर्ट ने अवैध खनन में अधिकारियों की मिलीभगत पर भी रिपोर्ट मांगी है। यही वजह है कि जांच एजेंसी अधिकारियों के खिलाफ भी गहनता से जांच कर रही हैं।

सीबीआइ जांच के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी सरकार  अवैध खनन का ये मामला उस वक्त का है, जब कुछ वक्त के लिए खनन मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पास था। मुख्यमंत्री ने अवैध खनन में तत्कालीन खनन मंत्री गायत्री प्रजापति का नाम आने पर उन्हें कैबिनेट से बाहर कर दिया था। इसके बाद ये प्रभार उनके पास चला गया था। हालांकि, बाद में प्रजापति की कैबनिट में वापसी हो गई, लेकिन उन्हें खनन मंत्रालय नहीं दिया गया। हाईकोर्ट द्वारा अवैध खनन केस में सीबीआइ जांच के आदेश के खिलाफ तत्कालीन अखिलेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी 2017 को सरकार की याचिका खारिज कर दी थी।

ये है इस केस का राजनीतिक पहलू  सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर तत्कालीन अखिलेश सरकार इस केस में फंसी आईएएस बी चंद्रकला समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ जांच रुकवाना चाहती थी। कुछ लोगों का मानना है कि उस वक्त खनन मंत्रालय अखिलेश यादव के पास था। ऐसे में सीबीआइ जांच की आंच उन तक भी पहुंच सकती है, इसलिए सरकार ने जांच रुकवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसके अलावा सीबीआई ने जिस दिन IAS बी चंद्रकला समेत केस के 11 अन्य आरोपियों के ठिकानों पर छापा मारा, उसी दिन यूपी में सपा और बसपा के गठबंधन की खबर सामने आयी थी। यही इस केस का राजनीतिक पहलू भी है। अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा मामले में बी चंद्रकला समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ मनी लॉड्रिंग की एफआइआर दर्ज करने के बाद एक बार फिर इस केस को लेकर राजनीति शुरू हो चुकी है।

हाईकोर्ट ने इसलिए दिए थे सीबीआइ जांच के आदेश  अवैध खनन की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि यूपी सरकार अवैध खनन बंद कराने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। कोर्ट ने कहा था कि सरकारी अफसरों की मिलीभगत के बिना इतने बड़े पैमाने पर अवैध खनन मुमकिन नहीं है। हाईकोर्ट में शुरूआती सुनवाई के दौरान तत्कालीन प्रमुख सचिव ने एक हलफनामा दायर कर न्यायालय को बताया था कि खनन पर रोक लगाने के लिए प्रत्येक जिले में अधिकारियों की टीम गठित की गई है। इस टीम की रिपोर्ट के मुताबिक पूरे प्रदेश में कहीं भी अवैध खनन नहीं हो रहा है। इस हलफनामें पर कोर्ट ने सवाल खड़े करते हुए सरकार को निर्देश दिया था कि अवैध खनन का पता लगाने के लिए सैटेलाइट मैपिंग कराई जाए। इस पर प्रमुख सचिव ने हाईकोर्ट में कहा कि प्रदेश में सैटेलाइट मैपिंग कराने की तकनीक नहीं है। इसके बाद हाईकोर्ट ने मामले में सीबीआइ जांच के आदेश दिए थे।

चंद्रकला के खिलाफ कार्रवाई से कईयों की नींद उड़ी  सीबीआइ ने भारतीय दंड संहिता और भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत कुछ जाने-माने व कुछ अज्ञात सरकारी कर्मचारियों व अन्य सहित 11 लोगों के खिलाफ दो जनवरी को एक मामला दर्ज किया था, जिसके बाद ये पूरा मामला सुर्खियों में आया था। अब ईडी ने भी मनी लॉड्रिंग एक्ट के तहत अवैध खनन आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। इस केस में आइएएस अधिकारी बी. चंद्रकला, खनिक आदिल खान, भूवैज्ञानिक/खनन अधिकारी मोइनुद्दीन, समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता रमेश कुमार मिश्रा, उनके भाई दिनेश कुमार मिश्रा, राम आश्रय प्रजापति, हमीरपुर के खनन विभाग के पूर्व क्लर्क संजय दीक्षित, उनके पिता सत्यदेव दीक्षित और रामअवतार सिंह के नाम प्राथमिकी में शामिल हैं। संजय दीक्षित ने 2017 विधानसभा चुनाव बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर लड़ा था। बताया जा रहा है कि चंद्रकला के खिलाफ कार्रवाई से इस सिंडीकेट में शामिल कई स्थानीय नेताओं की भी नींद उड़ी हुई है।

अरबों-खरबों रुपये का है अवैध खनन कारोबार  उत्तर प्रदेश में अवैध खनन का कारोबार कुछ करोड़ का नहीं बल्कि, अरबों-खरबों रुपये का है। इसमें भूमाफिया, अफसरों, नेताओं, स्थानीय दबंगों से लेकर कई प्रभावशाली लोगों की भागीदारी होती है। सबकी मिलीभगत होने की वजह से ही ये अवैध कारोबार प्रदेश में फलता-फूलता रहा है। अनुमान है कि यूपी में अवैध खनन के लिए मशहूर कुछ जिलों से ही सालाना 2500 करोड़ रुपये का अवैध खनन कारोबार होता है।

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