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Ayodhya Case: 1855 में ब्रिटिश सरकार ने रेलिंग लगा कर हिन्दुओं को अंदर जाने से रोक दिया। जिसके बाद भी हिंदू रेलिंग के बाहर से अंदर झांक कर दर्शन करते थे

नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक के मुकदमे की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदुओं का रेलिंग के पार अंदर झांक कर दर्शन करना और रेलिंग लगने के बाद उसके नजदीक ही चबूतरा बनाकर वहां पूजा करना दर्शाता है कि उस जगह के प्रति हिंदुओं में आस्था है। कोर्ट ने अंदरूनी हिस्से के बिल्कुल नजदीक बने राम चबूतरे को महत्वपूर्ण स्थिति बताते हुए बुधवार को ये टिप्पणियां कीं। बहस गुरुवार को भी जारी रहेगी। मालूम हो कि इस मामले में मुस्लिम पक्ष ने यह स्वीकार किया है कि हिंदू बाहर रामचबूतरे पर पूजा अर्चना करते थे। उन्होंने निर्मोही अखाड़ा के सेवादार के दावे को भी स्वीकार किया है। लेकिन दलील है कि अंदर मस्जिद थी और वहां मुस्लिम नमाज पढ़ते थे। बुधवार को सुनवाई के दौरान जब मुस्लिम पक्ष की ओर से राजीव धवन उन गवाहियों का जिक्र कर रहे थे जो हिंदू पक्ष की ओर से पेश की गईं थी तभी जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि क्या कोई ऐसा नक्शा है जिसमें अंदर के अहाते और रामचबूतरे के बीच की दूरी दी गई हो। कोर्ट को नक्शा दिखाया गया जिसमें कुल विवादित जमीन 1480 वर्गगज बताई गई है। 740 अंदरूनी आहाता और 740 बाहरी अहाता है।

1855 में ब्रिटिश सरकार ने अंदर के हिस्से में रेलिंग लगा दिये थे  देखने के बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अंदर केन्द्रीय गुंबद से बाहर रामचबूतरे की दूरी लगभग 120 से 150 फिट की होगी। उन्होंने कहा कि केस के मुताबिक 1855 से पहले हिंदू और मुसलमान दोनों अंदर जाते थे। 1855 में ब्रिटिश सरकार ने रेलिंग लगा कर हिन्दुओं को अंदर जाने से रोक दिया। जिसके बाद भी हिंदू रेलिंग के बाहर से अंदर झांक कर दर्शन करते थे।

रामचबूतरे पर पूजा अर्चना  1855 के बाद ही वहां बिल्कुल पास में राम चबूतरा बनाया गया जहां पर हिंदू पूजा करने लगे। राम चबूतरे का अंदर के केन्द्रीय गुंबद के बिल्कुल नजदीक होना दर्शाता है कि हिंदुओं की उस जगह को लेकर आस्था थी। वे रेलिंग के बाहर से अंदर झांक कर दर्शन करते थे जिससे उन्हें महसूस होता था कि वे अंदर ही पूजा कर रहे हैं। कोर्ट की इस टिप्पणी का राजीव धवन ने जोरदार विरोध किया। धवन ने कहा कि यह महज कोर्ट का अनुमान है। यह वास्तविकता नहीं है। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा तो फिर लोग अंदर क्यों झांकते थे। धवन ने कहा कि उन्हें नहीं मालूम, लेकिन लोग जिज्ञासावश झांकते होंगे। तभी जस्टिस अशोक भूषण ने कहा क्योंकि हिंदुओं का विश्वास है कि वही जन्मस्थान है। जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि इस बात के साक्ष्य हैं कि लोग वहां रेलिंग पर पूजा करते थे। धवन ने कहा कि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है 19वीं सदी के गैजेटियर से पहले का कोई साक्ष्य नहीं है। जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि मौखिक साक्ष्य है इस बारे में कि हिंदू मुस्लिम दोनों अंदर पूजा करते थे। जस्टिस भूषण ने विदेशी यात्री टिफिन थ्रेलर के वर्णन का हवाला दिया।

राम चबूतरा क्यों बना जब रेलिंग लगाई गई जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सोचने वाली बात है कि आखिर उसी समय के आसपास राम चबूतरा क्यों बना जब रेलिंग लगाई गई। उन्होंने कहा कि राम चबूतरा बनने के बाद मुसलमानों ने उसे बनाने पर ऐतराज किया था जिसके बाद 1885 में वहीं रामचबूतरे पर मंदिर बनाने के लिए मुकदमा दाखिल हुआ था।

रेलिंग के बारे में साक्ष्य दिखाएं  धवन ने विरोध करते हुए कहा कि यह सिर्फ कोर्ट का अनुमान है। वहां मस्जिद थी जिसकी चहार दिवारी भी थी। धवन ने कहा कि 1855 में समुदायों के बीच बहुत झगड़ा हुआ था। हिंदू मुस्लिम सिख एक दूसरे के दुश्मन हो गए थे इसलिए कानून व्यवस्था के लिए सरकार ने हस्तक्षेप किया था। ये समुदायों के बीच झगड़े का मामला है। कोर्ट को सारी परिस्थितियों पर विचार करना चाहिए। जस्टिस बोबडे ने धवन से रेलिंग के बारे मे साक्ष्य दिखाने को कहा।इससे पहले धवन ने हिंदू पक्ष की ओर से पेश किये गए धार्मिक और अन्य पुस्तकों के संदर्भ और विदेशी यात्रियों व गैजेटियर के संदर्भो पर कहा कि ये विश्वस्नीय नहीं है इनमें से ज्यादातर सुनी सुनाई बातों पर आधारित हैं।

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