साधना से आंतरिक शक्ति का जागरणः डॉ पण्ड्या
-शांतिकुंज में नवरात्र स्वाध्याय श्रृंखला का समापन
हरिद्वार। आत्मिक शक्ति के जागरण के लिए साधना आवश्यक है। गायत्री साधना तमस के आवरण को मिटाकर सतोगुण विकसित करने का काम करती है। चित्त में विवेक का जागरण होता है। अविद्या के अंधकार को मिटाकर विद्या को जगाती है। साधना से ही आत्मोन्नति के द्वार खुलता है।
उक्त विचार प्रखर शांतिकुञ्ज प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या ने व्यक्त किया। वे नवरात्र साधना में जुटे देश-विदेश के साधकों को वर्चुअल संदेश दे रहे थे। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भगवतगीता का उल्लेख करते हुए कहा कि जिन पुरुषों का विषयों पर चितंन करते हुए उनमें आसक्ति हो जाती है, आसक्ति उन विषयों की कामना उत्पनी करती है और कामना में विघ्न पड़ने पर जो क्रोध उत्पन्न होता है, उसका साधना से नष्ट किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि साधना से मन सहित विभिन्न इंद्रियों के वश में करने वाले मनुष्य अपने प्रगति का, उत्थान का सुगम मार्ग बनाता है और ऐसे व्यक्ति ही संत, सिद्ध, महापुरुष, ऋषि कहलाता है। महर्षि अरविन्द, स्वामी विवेकानंद, गायत्री के सिद्ध साधक पूज्य पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी आदि की इसी श्रेणी की आत्माएँ थीं। इन महापुरुषों ने साधना से प्राप्त होने वाले विभिन्न लाभों को बताते हुए कहते हैं कि काम, क्रोध, मोह से छुटकारा पाने चाहते हैं, तो साधनामय जीवन जिओ। उन्होंने कहा कि व्यक्ति सांसारिक वस्तुओं को पाने के लिए प्रयत्नशील है और वे वासनाओं-कामनाओं में भटक रहा है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि बुराइयों को त्यागकर अच्छाइयों की ओर चलो। इस नवरात्र साधना से प्राप्त ऊर्जा को अच्छे कार्यों में नियोजित करने चाहिए। गीतामर्मज्ञ श्रद्धेय डॉ. पण्ड्या के वर्चुअल संदेश से भारतवर्ष के अलावा अमेरिका, कनाडा, साउथ अफ्रीका सहित विभिन्न देशों के साधक आनलाइन जुड़ते और साधनापरक मार्गदर्शन प्राप्त करते रहे। इस दौरान उन्होंने साधकों के विभिन्न शंकाओं का समाधान भी किया। इसके साथ ही शांतिकुंज के अन्य कार्यकर्त्ताओं ने भी साधकों का मार्गदर्शन किया। इसके साथ ही नवरात्र के प्रथम दिन से प्रारंभ हुई स्वाध्याय शृंखला की इस कड़ी का समापन हो गयी।