Uttarakhand

ऑडिट रिपोर्ट ने खोली नगर निगम में वित्तीय अनियमितता की पोल

देहरादून : ‘बाड़ ही खेत को चर रही है’, यह कहावत देहरादून नगर निगम पर सटीक साबित हो रही है। आमदनी की कमी का रोना रो रहे राज्य के इस सबसे बड़े निकाय ने वित्तीय अनियमितता के चलते खुद को और सरकार को करोड़ों रुपये का चूना लगा दिया। राजस्व ठेकों पर स्टांप शुल्क पर अनुबंध न कर सरकार को 23 लाख से ज्यादा राजस्व का नुकसान हुआ। वहीं, पार्किंग ठेके और शो टैक्स में वसूली को लेकर आंख मूंदने का खामियाजा निगम को करीब साढ़े तेरह लाख के नुकसान के रूप उठाना पड़ा है।

भवन कर और भूमि कर की वसूली न होने से सिर्फ वित्तीय वर्ष 2014-15 में ही निगम को 2.44 करोड़ से ज्यादा की चपत लगी है। निगम के स्वामित्व की 183.93 हेक्टेयर भूमि पर अवैध कब्जे के चलते 1246.15 करोड़ की हानि निगम को हो रही है। निर्माण कार्यों में अनियमितता का एक अनूठा कारनामा नगर निगम की कार्यप्रणाली की पोल खोलने को काफी है।

दर्शनीगेट में 94,921 लागत से कराए गए काम के लिए कार्यादेश 17 अक्टूबर, 2013 को निर्गत हुआ, लेकिन पत्रावली में यह कार्य 16 अक्टूबर, 2013 को यानी एक दिन पहले ही कार्य पूरा होना दर्शाया गया है। ठेकेदार को भुगतान की गई 89244 धनराशि के गबन का अंदेशा जताया जा रहा है।

देहरादून नगर निगम की वर्ष 2014-15 की ऑडिट रिपोर्ट चौंकाने वाली है। रिपोर्ट बयां करती है कि जिस निगम पर राजधानी को सुव्यवस्थित करने का जिम्मा है, वह खुद अव्यवस्था का शिकार तो है ही, कामकाज में नियमों व कायदे-कानूनों को खुलकर ताक पर रखा जा रहा है। राज्य की सबसे बड़ी शहरी पंचायत में प्रोक्योरमेंट की अनदेखी की गई।

ठेकेदारों पर मेहरबानी, निर्माण कार्यों में अनियमितता

निगम और ठेकेदारों के बीच संबंधों का असर विकास कार्यों के समय पर पूरा नहीं होने के रूप में सामने आ रहा है। देर से काम करने वाले ठेकेदारों के प्रति नरमी बरतते हुए निगम ने खुद को भी चूना लगा दिया।

निगम के वार्ड-24 में निगम निधि से दर्शनी गेट, झंडा मोहल्ला आदि गलियों में सीसी पैच का निर्माण कार्य मैसर्स मासूम अली एंड कंपनी से कराया गया। कुल 94,941 लागत का कार्यदेश बाद में जारी हुआ लेकिन काम को पहले ही पूरा कर लिया गया।

इसी तरह वार्ड-20 में कांवली रोड पर जीतू की दुकान के पास से सावित्री देवी के मकान तक सीसी सड़क व नाली का निर्माण कार्य ठेकेदार से कराया गया। 1,49,570 लागत से इस कार्य का आदेश एक जनवरी, 2013 को जारी हुआ, लेकिन यह कार्य दो माह के बजाय तीन माह बाद एक अप्रैल, 2013 को पूरा हुआ।

देरी के लिए नियमों के मुताबिक ठेकेदार से कुल लागत का 0.5 फीसद प्रति हफ्ते की दर से 2991 की क्षतिपूर्ति की कटौती नहीं की गई। वार्ड-46 में मूलचंद एन्क्लेव, माजरा में एसके जैन के मकान से हरिद्वार बाइपास तक कुल लागत 8,76,082 से नाली निर्माण का कार्य आदेश 15 दिसंबर, 2012 को जारी हुआ, यह कार्य छह माह के भीतर पूरा होने के बजाय नौ माह से ज्यादा वक्त में पूरा हुआ।

कार्य को पूरा करने की समय सीमा में सक्षम स्तर से वृद्धि नहीं की गई। इसके बावजूद निगम ने संबंधित ठेकेदार से दस फीसद कटौती के रूप में 87608 रुपये की वसूली नहीं की।

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