Uttarakhand

अपराध बनाम राजनीति

अपराध विकास, अमीरी, गरीबी, धर्मान्धता, अशिक्षा, सामाजिक और आर्थिक स्तरों में अंतर और राजनीति के साथ ही चलने वाली एक बीमारी है जो सब परिस्थितियों के  साथ साथ खरपतवार की भांति उगती है। दूसरे शब्दों में यह एक मनोवैज्ञानिक दशा है जिसमे अपराध करने वाले का कोई जाति धर्म नही होता। न वह किसी विशेष राजनीति अथवा क्षेत्र से संबंध रखता है। कई बार अपराध अचानक तो कई बार योजनाबद्ध तरीके से पूर्व नियोजित होता है। यही नही अपराध कई बार संगठित और प्रायोजित भी होते है। अधिकतर अपराध होने के बाद विभिन्न लोग अपने अपने मन से उसकी चर्चा करने में लग जाते हैं। ऐसे में विभिन्न राजनीतिक दल भी संबंधित सरकार को अपना निशाना बनाते हुए अपनी रोटी सेंकने का प्रायः धंधा शुरू कर देते है नतीजतन कुछ अपराध राजनीतिक कारणों से विशेष आकर्षण का केंद्र हो जाते है।
हकीकत यह है कि अपराध अधिकतर जातिगत नही होते लेकिन जब हमारे राजनीतिक नेता और पत्रकार इसमें कूद पड़ते है तो अपराध,जाति और वोट नीति को मिलाकर ऐसी खिचड़ी बना देते है कि अपराध की वास्तविक कहानी पीछे रह जाती है । देश मे अपराध अनुमन्य नही है और महिलाओं, बच्चियों के साथ होने वाले अपराध तो प्रत्येक दृष्टि से समाज के ऊपर कलंक है। एक समय था जब दबंग लोग ऐसे अपराधों में ज्यादा संलिप्त पाए जाते थे लेकिन विकास के रथ के साथ ऐसी स्थिति पैदा हो गयी कि अब ऐसे अपराधों को जातियों से जोड़ना तर्कसंगत नही लगता। जहां जिसकी आपराधिक मानसिकता होती है वह जिसके साथ मौका मिले अपराध कर देता है। यहाँ तक कि सामाजिक मूल्यों और रिश्तों का भी कोई मूल्य नही रह गया है। ऐसा भी नही है कि सारी जिम्मेदारी केवल पुरुषों की ही होती है बल्कि विभिन्न कारणों से महिलाएं भी इन अपराधों के लिए बड़ा कारण बनती है। वास्तव में हर अपराध को एक ही दृष्टि से आंकलन नही किया जा सकता। लेकिन जघन्य अपराध ऐसा अपराध है जिसके कारण ढूढने से पहले तुरंत कार्यवाही अपेक्षित है।मेरी रॉय में इन्हें रोकना तो शायद संभव नही लेकिन न्यूनतम अवश्य किया जा सकता है साथ ही ऐसे जघन्य अपराधों के बाद होनेवाली राजनीति, जनहानि और अनावश्यक प्रचार से भी होनेवाली स्थिति से बचा जा सकता है। मुझे यहाँ किसी अपराध के ट्रायल की आवश्यकता नही लेकिन हमें ऐसे अपराधों से निपटने के लिए उपाय खोजने होंगे ।बार बार सरकारों को उत्तरदायी ठहराकर राजनीति करने और मामले को हवा देकर उसकी जांच प्रभावित करने जैसी प्रथाओं पर गंभीर मंथन करना होगा। इस विषय मे एक निश्चित कार्यपरणाली को अपनाना होगा और प्रबंध करना होगा कि अपराधी को कठोर और शीघ्र सजा मिल सके और अपराध करने वालो के लिये उचित उदाहरण प्रस्तुत किया जा सके।इसके लिये कुछ सुझाव है।
1 बलात्कार, हत्या, सम्परायदिक उपद्रव आदि गंभीर अपराध होने पर संबंधित जिलाधिकारी, थाना अध्यक्ष, पुलिस उपाध्यक्ष तथा पुलिस अधीक्षक द्वारा प्रभावी कार्यवाही न करने की दशा में तुरंत निलंबित कर जांच विशेष जांच दस्ते को सौंप दी जानी चाहिए।साथ ही उक्त अधिकारियों का उत्तरदायित्व निश्चित किया जाना चाहिए। ट्रांसफर , निलंबन भी कोई सजा नही है अतः अनुशासनात्मक कार्यवाही निश्चित की जानी चाहिए। ऐसे गैरजिम्मेदार अधिकारियों को प्रतिकूल टिप्पणी देते हुए सेंसर किया जाना चाहिए। लेकिन साथ ही उन्हें निष्पक्ष और कठोर कार्यवाही किये जाने के अधिकारों के साथ उचित वातावरण भी निश्चित किया जाना चाहिए जिससे वे निडर होकर अपना कर्तव्य निर्वाह कर सके।
2 विशेष परिस्थिति में जांच केंद्रीय अन्वेषण बयूरो को यथा शीघ्र सौंप दी जानी चाहिये।
3 पीड़ित परिवार अथवा संबंधित स्थान पर किसी भी जातिगत, सम्प्रदाय विशेष अथवा जमावड़े की अनुमति नही दी जानी चाहिए।
4 केवल पत्रकारों ,  राजनीतिक अध्यक्षो और स्थानीय जन प्रतिनिधियों को ही अकेले अपराध पीड़ित परिवार से जानकारी लेने और सद्भावना व्यक्त करने के लिए अधिकृत किया जाना चाहिये।इस संबंध में यदि कोई राजनीतिक प्रदर्शन या जमावड़ा होता है तो उसकी जिम्मेदारी भी उसी जनप्रतिनिधि की निश्चित की जानी चाहिए।
5 पत्रकारों को अपराध के ट्रायल से बचते हुए ही समाचारों व रिपोर्ट्स का प्रसारण करना चाहिए और किसी प्रकार की भड़काने वाली टिप्पणी की मनाही होनी चाहिए।
6 अपराध के बाद किसी प्रकार के सम्परायदिक बयान पर सख्त पाबंदी होनी चाहिए और ऐसा करने वाले के विरुद्ध भी सख्त कार्यवाही की जानी चाहिये।
7 किसी भी विरोध प्रदर्शन, शांति मार्च आदि की अनुमति केवल सामाजिक संस्थाओं के अलावा किसी भी राजनीतिक दल को नही होनी चाहिए।
8 अपराध की तुरंत जांच और अपराधी पर समयबद्ध न्यायिक प्रकिर्य्या सुनिश्चित करते हुए पीड़ित को न्याय सुनिश्चित किया जाना चाहिए। सभी जघन्य अपराधों में न्याय की अधिकतम समय सीमा तय की जानी चाहिए।
9 न्याय हित मे सभी पक्षो का नार्को टेस्ट किया जाना आवश्यक होना चाहिए।
10 पीड़ित को कानूनी सहायता और सुरक्षा देने के अलावा किसी भी प्रकार के मुवावजे और अन्य सरकारी नॉकरी के आश्वासन से न्याय की प्रकिर्य्या पूरी होने तक बचा जाना चाहिये। इससे निर्दोष को न्याय मिलने की आवश्यकता पर प्रभाव पड़ने की संभावना हो सकती है। यही नही झूठे केस बनाने की परवर्ती को भी बढ़ावा मिल सकता है।
11 ऐसे किसी भी अपराध को न्यायपालिका के संज्ञान में तुरंत लाना आवश्यक होना चाहिए।
यद्यपि कानून व्यवस्था राज्य के अधीन है लेकिन ऐसे निर्धारित अपराधों के लिये एक समान कार्य प्रणाली सभी राज्यो के लिए बाध्य होनी चाहिए। ऐसे अपराधों में राज्य द्वारा राजनीतिक आधार पर  दुर्भावना पूर्ण कार्य करने पर केंद्र को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए।
इस तरह के अपराध कही भी और किसी के भी साथ घाट सकते है। यह एक सामाजिक बुराई है और आप और हैम सभी को प्रभावित करती है। अतः मेरा निवेदन है कि सभी लोग मिलकर इस बुराई से लड़े। इस संदेश को अधिक से अधिक प्रचारित करे जिससे जनता की आवाज़ शासन में बैठे उच्च अधिकारियों और नेताओं तक पहुंच सके।
लेखकः-ललितमोहन शर्मा

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