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अनर्गल दलीलें, कहां तक सही
आजकल सोशल मीडिया पर एक मैसेज तैर रहा है जिसमे एक व्यक्ति हरी टोपी लगाए किसी पंचायत में ब्राह्मण और पुजारियों के विरुद्ध बाते कर लोगो को उकसा रहा है। अपनी माताओं और बहनों से शिकायत करता है कि वे मंदिरों में रोज दूध देने जाती है। जरा उसकी भाषा पर गौर कीजिए।जो व्यक्ति ऐसी द्वी अर्थी भाषा का प्रयोग अपनी माताओं और बहनों के लिए करता हो, कभी किसी कोन से सभ्य और समाज के बीच बैठने लायक हो सकता है। यह ठस दिमाग का व्यक्ति कौन हो सकता है देश की जनता पहचानती है। उसे उसके क्षेत्र में कोई मान्यता नही मिलती। मुफ्त की रोटियां तोड़ने के लिये पहुंच जाते है बिना बुलाये इसलिये जो बोले सो निहाल का नारा लगा रहे हैं।किसी गरीब के हिस्से का लंगर खा रहे है। जरा बताये लंगर में उनका अपना क्या योगदान है? समझ नही आता क्या जनता की सेवा करने वाले गुरु पुत्रो ने ऐसे लोगो के लिए लंगर लगाए हैं? अपात्र की सेवा करने में कोई पुण्य नही है। ईश्वर की करोड़ो संतानों की हमारे सिख भाई लंगर से सेवा करते है उन्हें गुरु की कृपा मिलती है। ऐसे लोगो को जो समाज मे जातिगत द्वेष उत्पन्न करते हो,अपने बीच बैठा कर हंसी का पात्र बन रहे है। धर्म कोई भी हो गुरु को ब्रह्मा का स्थान दिया गया है। मस्जिद का मौलवी, गुरुद्वारे का ग्रंथि, गिरजाघर का पादरी और मंदिर में बैठे पुजारी सभी देवतुल्य सम्मान के अधिकारी है। इस बात को कोई झुठला नही सकता कि ईश्वर का मार्ग इन्ही महान गुरुओं द्वारा जनता को दिखाया जाता है और ये सज्जन अकल के दुश्मन चले भगवान के बंदों से हिसाब मांगने। इनको कोई समझाय की इन भगवान के दूतों को जनता भगवान के नाम पर शृद्धा स्वरूप देती है किसी जबरदस्ती से नही। चलिये हिसाब लेने, लिस्ट बनाने यही जनता आपसे हिसाब ले लेगी।
अपने सभी सिख भाइयो, किसान भाइयों और ब्राह्मण भाइयो तथा सभी माताओं और बहनों से निवेदन है कि ऐसे ठस इंसान को अपने आस पास भी न फटकने दे। उसका तिरस्कार होना चाहिए और विश्व के हमारे शिष्ट समाज और शांति के रिकॉर्ड वाले किसान आंदोलन से ऐसे व्यक्ति को बाहर कर देना चाहिए। देश के ब्राह्मणों और माताओं बहनों के लिये यह संकेत काफी है।अधिकार आपका है अपना सम्मान चुनिए अथवा तिरस्कार।
लेखकः-एल0एम0 शर्मा