Uttarakhand
अमृता विश्व विद्यापीठम ने भू-स्थानिक उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने के लिए एसरी (ईएसआरआई) इंडिया के साथ किया समझौता
देहरादून- एनआईआरएफ 2020 में भारत में चैथे सर्वश्रेष्ठ समग्र विश्वविद्यालय का स्थान हासिल करने वाले अमृता विश्व विद्यापीठम ने अनुसंधान, विकास और परीक्षण के लिए समर्पित सुविधाओं के साथ स्थानिक विश्लेषण और मॉडलिंग पर भू-स्थानिक उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने के लिए, जिओस्पेशियल इन्फॉर्मेशन सिस्टम्स में मार्केट लीडर एसरी इंडिया (ईएसआरआई इंडिया) के साथ एक समझौता किया है। केंद्र शिक्षाविदों, छात्रों और उद्योग में भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), मशीन लर्निंग (एमएल) और जिओस्पेशियल बिग डेटा एनालिटिक्स जैसे नवीनतम टूलकिट के बारे में विशिष्ट कौशल और तकनीकी ज्ञान के विकास को बढ़ावा देगा। इसके तहत विशेष रूप से विविध-खतरों के जोखिम को कम करने और सामुदायिक लचीलापन को मजबूत करने के लिए भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग क्षेत्रों में सर्टिफिकेट और डिप्लोमा पाठ्यक्रम, प्रशिक्षण कार्यक्रम और कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा ।
एमओयू के बारे में बात करते हुए, अमृता विश्व विद्यापीठम के इंटरनेशनल प्रोग्राम्स की डीन और सस्टेनेबल डेवलपमेंट एंड इनोवेशन पर यूनेस्को अध्यक्ष, डॉ मनीषा सुधीर ने कहारू “इस साझेदारी का उद्देश्य जियोफॉर्मेटिक्स, स्पेशियल एनालिटिक्स और मॉडलिंग में अनुसंधान और क्षमता विकास को बढ़ावा देना है। यह सहयोगी पहल संकाय, स्नातक, परास्नातक और पीएचडी छात्रों को शामिल कर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा (एसडीजी 4), लैंगिक समानता (एसडीजी 5), स्थायी समुदायों (एसडीजी 11), और जलवायु कार्रवाई (एसडीजी 13) को संबोधित करने के लिए काम करेगी। ये पहल मौजूदा पाठ्यक्रम और शैक्षिक सामग्री को बढ़ाने में मदद करेंगे, साथ ही स्थानिक भू-विज्ञान का उपयोग करके स्थिरता की पहल के लिए प्रभावी शिक्षण और सीखने के लिए नए शैक्षिक दृष्टिकोण विकसित करेंगे।
ईएसआरआई इंडिया के अध्यक्ष अगेंद्र कुमार ने कहारू “भविष्य के लिए छात्रों को तैयार करने के लिए आवश्यक उपकरण और प्रौद्योगिकियों के साथ अकादमिक समुदाय को सशक्त बनाना और क्षमता निर्माण हमारी प्रमुख प्राथमिकताओं में से एक है। भू-स्थानिक अवसंरचना आपदा-जोखिम में कमी, स्थिरता और लचीलापन इस पहल का मूल आधार है। अमृता विश्व विद्यापीठम के साथ हमारा सहयोग बेहतर स्थिरता और विकास के लिए विभिन्न शोध पहलों और अमृता लाइव-इन-लैब्स जैसे प्रमुख कार्यक्रमों का समर्थन करेगा।”
इस एमओयू पर हस्ताक्षर आपदा जोखिम न्यूनीकरण और सामुदायिक लचीलापन पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान किया गया, जिसे भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इन्फॉर्मेशन सर्विसेज (ईएसएसओ- आईएनसीओआईएस), एसरी इंडिया (ईएसआरआई इंडिया) और अमृता विश्व विद्यापीठम के द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था। यह कार्यक्रम 2004 के हिंद महासागर सुनामी की 16 वीं वर्षगांठ मनाने के लिए आयाजित की गई थी। प्रतिभागियों ने उस भयावह घटना के बाद से सामना की गई चुनौतियों और सबक के बारे में चर्चा की, और भारत में सुनामी के भविष्य के प्रभाव को कम करने के लिए सामुदायिक लचीलापन, शासन और तकनीकी समाधान में भारत की वर्तमान तैयारी का विश्लेषण किया।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव, ईएसएसओदृ आईएनसीओआईएस के अध्यक्ष और भारत सरकार के पृथ्वी आयोग के अध्यक्ष डॉ एम राजीवन ने कहारू “भले ही हमारे पास आज सुनामी की चेतावनी देने वाले सिस्टम मौजूद हैं, फिर भी कई पिछडे क्षेत्र हैं जहाँ हमें सुधार करने की आवश्यकता है। हमें निर्णय समर्थन प्रणाली और लोगों के साथ अंतिम-मील कनेक्शन को बेहतर बनाने के लिए वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों को जोडना है।”
भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इन्फॉर्मेशन सर्विसेज (आईएनसीओआईएस) के निदेशक डॉ टी श्रीनिवास कुमार ने कहारू ʺएमओईएसदृ आईएनसीओआईएस में अत्याधुनिक सुनामी प्रारंभिक चेतावनी केंद्र के साथ, भारत 2004 की तुलना में सुनामी के खतरे की तुलना में आज बहुत सुरक्षित है। हालांकि, शुरुआती चेतावनी और सामुदायिक प्रतिक्रिया के संबंध में चुनौतियां अब भी बनी हुई हैं, खासकर वैसी सूनामी जो गैर-भूकंपी और प्रभावित क्षेत्र के निकट-स्रोत से शुरू हुई हैं। सभी घटक एजेंसियों के एसओपी को मजबूत करना और सुनामी की शुरु से अंत तक की चेतावनियों की श्रृंखला को मजबूत करना भी एक महत्वपूर्ण कार्य है।”
अमृता विश्व विद्यापीठम के इंटरनेशनल प्रोग्राम्स की डीन और सस्टेनेबल डेवलपमेंट एंड इनोवेशन पर यूनेस्को अध्यक्ष, डॉ मनीषा सुधीर ने कहा, “संगोष्ठी ने तटीय समुदायों के पुनर्वास और लचीलापन में सुधार के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी में पिछले 16 वर्षों की प्रगति को एकीकृत करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य किया। इसने तटीय समुदायों पर सुनामी के प्रभाव को समझकर, सुनामी की निगरानी और मॉडलिंग में नवीनतम प्रगति का उपयोग करके, और भारत की आपदा तैयारियों को आगे बढ़ाने, समुदायों को टिकाऊ और लचीला बनाने के लिए एक रणनीतिक ढांचे के साथ आकर खतरों और संवेदनशील कारकों को कम करने के लिए वैज्ञानिक सामाजिक जिम्मेदारी पर जोर दिया।