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अब रेलयात्रियों को बीच रास्ते ट्रेन में पानी की किल्लत का सामना नहीं करना पड़ेगा, यात्रियों को मिलेगी यह नई सुविधा

नई दिल्ली। अब रेलयात्रियों को बीच रास्ते ट्रेन में पानी की किल्लत का सामना नहीं करना पड़ेगा। डेढ़ सौ साल के इतिहास में पहली बार भारतीय रेल बोगियों में पानी भरने की अपनी पुरातन प्रणाली का आधुनिकीकरण करने जा रही है। जिससे ट्रेनों में असमय पानी खत्म होने की समस्या का अंत हो जाएगा। इसके लिए 140 प्रमुख स्टेशनो पर नया क्विक वाटरिंग सिस्टम स्थापित किया जा रहा है। रेलवे बोर्ड के मेंबर-रोलिंग स्टाक, राजेश अग्रवाल ने बताया कि वैसे तो क्विक वाटरिंग तकनीक का विकास रेलवे ने दस वर्ष पहले ही कर लिया था। आरडीएसओ की कैमटेक वर्कशाप ने इसकी पूरी प्रणाली तैयार कर ली थी। लेकिन वित्तीय अड़चनों के कारण इसे केवल सात स्टेशनों पर लगाया जा सका था। किन्तु अब सरकार ने इसे संपूर्ण रेलवे में लगाने का निर्णय लिया है। इसके तहत 2018-19 के अंत तक सभी प्रमुख वाटरिंग स्टेशनों पर क्विक वाटरिंग सिस्टम लगा दिया जाएगा।

क्या है क्विक वाटरिंग सिस्टम  क्विक वाटरिंग सिस्टम के तहत चार इंच व्यास वाली पुरानी पाइप लाइनों को बदल कर छह इंची पाइप लाइने बिछाई जाएंगी। साथ ही प्रेशर पंप लगाए जाएंगे। फिर इसे कंप्यूटराइज्ड ‘स्केडा’ प्रणाली के जरिए संचालित किया जाएगा। इससे हर ट्रेन के उन कोच में पूरा पानी भर जाएगा जो खाली हैं अथवा जिनमें पानी की मात्रा कम है। अभी ट्रेनों में पानी भरने की जो व्यवस्था है उसमें चार इंच के पाईपों का इस्तेमाल होता है। साथ ही प्रेशर पंप का इस्तेमाल न होने से पानी का प्रेशर भी कम रहता है। इससे हर कोच में एक समान पानी की भरपाई नहीं होगी और कुछ डिब्बे खाली या अधभरे रह जाते हैं। इसका खामियाजा अक्सर यात्रियों को भुगतना पड़ता है क्योंकि ट्रेन में पानी खत्म होने से टायलेट और सिंक के नल सूख जाते है। क्विक वाटरिंग प्रणाली से ये परेशानी दूर हो जाएगी। क्योंकि यह कंप्यूटराइज्ड आकलन के आधार पर हर कोच में उसकी पूरी 1800 लीटर की क्षमता के अनुसार पानी की उपयुक्त मात्रा भरना सुनिश्चित करेगी। इससे पानी की बर्बादी भी रुकेगी। अग्रवाल के मुताबिक इस सिस्टम को लगाने में प्रति स्टेशन दो-तीन करोड़ रुपये के खर्च के हिसाब से कुल लगभग 400 करोड़ रुपये की लागत आएगी। इसे लगाने के लिए प्रत्येक जोन द्वारा खुली निविदाएं आमंत्रित की जाएंगी।

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