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आधार योजना शुरु से ही राजनीतिक फुटबाल की तरह से इस्तेमाल होती रही

 नई दिल्ली। आधार योजना पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उम्मीद की जा रही है कि इसको लेकर जारी सारे संशय अब खत्म हो जाएंगे। वैसे प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस और सत्ताधारी पार्टी भाजपा की तरफ से जिस तरह की प्रतिक्रियाएं आई हैं उससे साफ है कि इस पर राजनीति अभी खत्म नही होने जा रही। असलियत में आधार योजना शुरु से ही राजनीतिक फुटबाल की तरह से इस्तेमाल होती रही। यूपीए के कार्यकाल में भाजपा ने इसका जमकर विरोध किया तो इसको लागू करने वाली कांग्रेस अब स्वयं इसके विरोध का हर श्रेय लेने में जुटी है।

आधार पर अपनी सहूलियत से सुर बदलती रही हैं राजनीतिक पार्टियां  आधार योजना दरअसल देश के हर नागरिक को एक विशेष पहचान पत्र देने की परिकल्पना की उपज है। वाजपेयी काल में इस बारे में सबसे पहले कारगिल युद्ध के बाद गठित सुब्रमण्यम समिति ने सुझाया था। वर्ष 2003 में तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने नागरिक (संशोधन) विधेयक पेश किया जिसमें हर नागरिक को एक विशिष्ट पहचान पत्र देने की बात कही गई थी।

यूपीए में विभिन्न मंत्रालयों के बीच ही होती रही है इस पर राजनीति  यूपीए-एक के कार्यकाल में इस योजना को सिर्फ इस आधार पर विरोध किया गया कि यह एनडीए ने तैयार किया है। वामपंथी दलों के समर्थन वाली इस सरकार में योजना आयोग व गृह मंत्रालय में आधार को लेकर पहली बार चर्चा शुरु हुई, लेकिन कोई ठोस राय नहीं बन पाई। यूपीए के मई, 2009 में दोबारा सत्ता में आने के तुरंत बाद (सितंबर, 2009) से नंदन नीलकेणी की अगुवाई में इस पर काम तेजी से शुरु हो गया। फरवरी, 2012 में सरकार की तरफ से निजी एजेंसियों मसलन टेलीकॉम कंपनियों, बीमा व बैंकिंग कंपनियों व सरकारी विभागों को पहचान स्थापित करने के लिए इसके इस्तेमाल की अनुमति दे दी गई, लेकिन इसके साथ ही सरकार के भीतर और बाहर इसका बड़ा विरोध भी शुरु हो गया। और अब कांग्रेस इसी आधार पर राजग को घेर रही है।

आधार योजना को लेकर यूपीए-दो के भीतर ही खूब घमासान हुआ। गृह मंत्री पी चिदंबरम ने आधार की गड़बडि़यों पर तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह को पत्र लिखा और नागरिकों के डेटा की सुरक्षा पर सवाल उठाया था। वह इसे नेशनल पोपुलेशन रजिस्टर के प्रयास को ध्वस्त करने की साजिश के रूप में भी देख रहे थे। उस वक्त भाजपा ने भी इसका विरोध किया। भाजपा सांसद यशवंत सिन्हा की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने आधार के खिलाफ बेहद तल्ख रिपोर्ट दी। पीएम पद के उम्मीदवार बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने तो लगातार आधार में हो रही गड़बडि़यों और इसकी आड़ में अवैध घुसपैठियों को बढ़ावा देने का मुद्दा कई चुनावी रैलियों में उठाया।

चुनाव बाद सत्ता बदली और राजनीतिक दलों के सुर भी बदल गये। गृह मंत्री बनने के बाद राजनाथ सिंह ने अपने पहले संवाददाता सम्मेलन में यह संकेत दिए कि एनडीए आधार योजना की जगह अपनी एनपीआर योजना लेकर आएगी, लेकिन जुलाई, 2014 के पहले हफ्ते में नीलकेणी की मुलाकात पीएम मोदी व वित्त मंत्री अरुण जेटली से हुई और सारा परिदृश्य बदल गया। कुछ ही दिनों बाद पेश आम बजट में सरकार ने आधार के लिए बजट बढ़ा दिया।जनवरी, 2015 में सरकार ने जनधन, आधार व मोबाइल (जैम) के आधार पर सरकारी सब्सिडियों को देने की सोच को सामने रखा। इसके साथ ही कांग्रेस आधार के विरोध में उतर आई।

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