महात्मा गांधीजी केवल एक व्यक्ति नहीं बल्कि जीवन का पूरा महाग्रंथः स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने गांधी जी की पुण्यतिथि के पूर्व संध्या पर युवाओं का आह्वान करते हुये कहा कि आईये महात्मा गांधीजी की 73 पुण्यतिथि पर उनके दो हथियारों ’’सत्य और अहिंसा’’ को अपने जीवन का ध्येय बनायें और भारत को अस्पृश्यता और साम्प्रदायिकता से मुक्त राष्ट्र बनाने में अपना योगदान प्रदान करें।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि 73 वर्ष पूर्व महात्मा गांधी जी इस दुनिया से अलविदा हुये परन्तु उनके द्वारा स्थापित किये गये मूल्य, विचारधारा और सिद्धान्त हर युग के लिये प्रासंगिक है तथा सदियों तक जनमानस व नीति निर्माताओं का मार्गदर्शन करते रहेंगे।
स्वामी जी ने कहा कि गांधी जी जीवनपर्यंत प्रयास करते रहे कि लोगों के लिये स्थानीय स्तर पर आजीविका का सृजन किया जाये, गांवों और शहरों के बीच जो विकास संबंधी अन्तर है वह समाप्त हो तथा छोटे और बड़े, हर समुदाय और हर व्यक्ति को विकास के समान अवसर प्राप्त हो, गांधीजी का यही सिद्धान्त देश में सतत विकास को बढ़ाता है। उनका चिंतन और विचारधारायें वर्तमान के साथ-साथ उज्जवल भविष्य की नींव मजबूत करने वाली हैं। उन्होंने जो आत्मनिर्भर गांव और आत्मनिर्भर भारत का स्वपन देखा था आज उसे हम प्रधानमंत्री माननीय मोदी जी के नेतृत्व में साकार होते देख रहें हैं। गांधी जी का मानना था कि हमारे गांवों में वह समर्थ है कि वे हमारे शहरों की हर मौलिक जरूरतों को पूरा कर सकते है इसलिये हमें बाहर की वस्तुओं पर निर्भर नहीं रहना चाहिये। उनका मानना था कि भारत केवल आत्मनिर्भर होकर ही स्वतंत्र हो सकता इसलिये गांवों में और युवाओं में नई ऊर्जा जागृत करने की जरूरत है। स्वामी ने युवाओं का आह्वान करते हुये कहा कि अपने कर्तव्यों के प्रति जिम्मेदार और जवाबदेह बनकर सजगता और सादगी से समाज के प्रति समर्पित जीवन जियें। भौतिक सुखों के पीछे न भागे और आत्मिक सुखों की अनदेखी न करे। भौतिक विकास के साथ नैतिक विकास भी बहुत जरूरी है। जब किसी राष्ट्र में भौतिक विकास के साथ नैतिक विकास होता है तभी वह देश अपना सर्वांगीण विकास कर सकता है। स्वामी जी ने कहा कि अहिंसा और सत्य के पुजारी महात्मा गांधी जी ने सत्य, अहिंसा और सादगी को ही अपने जीवन का मूल मंत्र बनाया तथा उन्होंने अपना पूरा जीवन सत्य की खोज में समर्पित कर दिया ऐसे महान देशभक्त की भारत की आजादी के एक वर्ष के भीतर ही 30 जनवरी, 1948 को प्रार्थना सभा के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी।