‘चमकौर का युद्ध’ आने वाली पीढ़ियों के लिये वीरता, साहस और बलिदानी परम्परा की स्वर्णिम इबादत
ऋषिकेश। आज का दिन भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण दिन है। शुक्ल सप्तमी संवत् 1723 विक्रमी को सिखों के दसवें महान गुरु पूज्य गुरू गोबिन्द सिंह जी का जन्म हुआ था। वे एक महान योद्धा, आध्यात्मिक गुरू और सच्चे बलिदानी थे। असाधारण प्रतिभा और अद्म्य साहस के धनी गुरू गोबिन्द सिंह जी ने मुगलों के साथ 14 युद्ध लड़े और अपनी मातृभूमि व धर्म की रक्षा के लिये अपने समस्त परिवार का बलिदान कर दिया ऐसे महापुरूष की देशभक्ति और कर्तव्यनिष्ठा को नमन।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि गुरु गोबिंद सिंह भक्ति, शक्ति और बलिदान के अद्वितीय संगम थे। गुरु गोबिंद सिंह की इन दो पंक्तियों में मातृभूमि के प्रति उनकी आस्था और अद्भुत साहस समाहित हैं “चिड़ियों से मैं बाज लडाऊं, गीदड़ों को मैं शेर बनाऊ।” सवा लाख से एक लडाऊं तभी गोबिंद सिंह नाम कहाउँ !!” ऐसे वीर तपोनिष्ठ की कर्तव्य निष्ठा और राष्ट्र भक्ति को शत-शत नमन। स्वामी जी ने कहा कि गुरु गोबिंद सिंह जी सदैव धर्म और सत्य के मार्ग पर चलते हुये सभी को प्रेम, एकता, भाईचारा, सहनशीलता, मधुरता और सौम्यता का संदेश दिया। उन्होंने रंग, वर्ण, जाति, संप्रदाय आदि के भेदभाव के बिना समता, समानता एवं समरसता को आत्मसात कर जीवन में आगे बढ़ने का मार्ग दिखाया। स्वामी ने कहा कि 22 दिसंबर वर्ष 1704 को चमकौर में सिक्खों और मुगलों के बीच जो “चमकौर का युद्ध” लड़ा गया था, वह एक ऐतिहासिक युद्ध था, जिसका नेतृत्व स्वयं गुरुगोबिन्द सिंह जी कर रहे थे। अपने 40 सिक्ख योद्धाओं के साथ गुरूगोबिंद सिंह जी ने वजीर खान के नेतृत्व वाले 10 लाख मुगल सैनिकों का सामना बड़ी कुशलता और वीरता के साथ किया था। यह एक ऐसा ऐतिहासिक युद्ध था जिसने गुरूगोबिन्द सिंह के अद्म्य साहस, सिक्खों की वीरता एवं अपने धर्म के प्रति अटूट निष्ठा से परिचय कराया। स्वामी जी ने कहा कि न केवल “चमकौर का युद्ध” बल्कि गुरूगोबिन्द सिंह जी का प्रत्येक संदेश, उनकी शक्ति और भक्ति युगों-युगों को तक भारतमाता को गौरवान्वित करती रहेगी।