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शिक्षाविदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर देश में बिगड़ते अकादमिक माहौल के लिए वामपंथी गतिविधियों को ठहराया जिम्मेदार

नई दिल्ली। विश्वविद्यालयों के कुलपतियों सहित 200 से अधिक शिक्षाविदों ने रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर देश में बिगड़ते अकादमिक माहौल के लिए वामपंथी कार्यकर्ताओं के एक छोटे समूह की गतिविधियों को जिम्मेदार ठहराया है। प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा गया है, ‘हमारा मानना है कि छात्र राजनीति के नाम पर एक विध्वंसकारी धुर वामपंथी एजेंडे को आगे बढ़ाया जा रहा है। जेएनयू से लेकर जामिया तक, एएमयू से लेकर जाधवपुर विश्वविद्यालय तक परिसरों में हुई हाल की घटनाएं हमें वामपंथी कार्यकर्ताओं के छोटे से समूह की शरारत के चलते बदतर होते अकादमिक माहौल के प्रति सावधान करती हैं।’

       आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय के कुलपति आरपी तिवारी, दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति एचसीएस राठौर और सरदार पटेल विश्वविद्यालय के कुलपति शिरीष कुलकर्णी सहित अन्य शामिल हैं। इसे ‘शैक्षणिक संस्थानों में वामपंथी अराजकता के खिलाफ बयान’ शीर्षक दिया गया है। वामपंथ की ओर झुकाव रखने वाले समूहों को आड़े हाथों लेते हुए कहा गया है कि वामपंथी राजनीति द्वारा थोपे गए सेंसरशिप के चलते जन संवाद आयोजित करना या स्वतंत्र रूप से बोलना मुश्किल हो गया है। वामपंथियों के गढ़ों में हड़ताल, धरना और बंद आम बात हो गई है। वाम विचारधारा के अनुरूप नहीं होने पर लोगों को व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाना, सार्वजनिक छींटाकशी और प्रताड़ना बढ़ रही है। इस तरह की राजनीति से सबसे बुरी तरह से गरीब और हाशिए पर मौजूद समुदायों के छात्र प्रभावित हो रहे हैं।  इसमें कहा गया है, ‘ये छात्र सीखने और अपने लिए बेहतर भविष्य बनाने का अवसर खो देंगे। वे अपने विचारों को प्रकट करने और वैकल्पिक राजनीति की स्वतंत्रता खो देंगे। वे खुद को बहुसंख्यक वाम राजनीति के अनुरूप करने के प्रति सीमित पाएंगे। हम सभी लोकतांत्रिक ताकतों से एकजुट होने और अकादमिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा विचारों की बहुलता के लिए खड़े होने की अपील करते हैं।’

      पीएम मोदी को लिखे इस पत्र में शिक्षाविदों ने कहा कि हम शिक्षाविदों का समूह शिक्षण संस्थानों में बन रहे माहौल पर अपनी चिंताएं बताना चाहते हैं। हमने यह महसूस किया है कि शिक्षण संस्थानों में शिक्षा सत्र के रोकने और बाधा डालने की कोशिश छात्र राजनीति के नाम पर वामपंथ एक एजेंडे के तहत कर रहा है। अकादमिक विद्वानों ने अपने पत्र में लिखा है कि हमारा मानना है कि छात्र राजनीति के नाम पर अतिवादी वामपंथी अजेंडे को आगे बढ़ाया जा रहा है। हाल ही में जेएनयू से लेकर जामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से लेकर जाधवपुर विश्वविद्यालय के माहौल में जिस तरह की गिरावट आई है वह वामपंथियों और लेफ्ट विंग एक्टिविस्ट के एक छोटे समूह की वजह से हुआ है। इन शिक्षाविदों ने कहा कि इन संस्थानों में वामपंथियों की वजह से पढ़ाई-लिखाई के कामों में बाधा पहुंची है। छोटी उम्र में ही छात्रों को कट्टरपंथी बनाने की कोशिश ना केवल उनके सोचने की क्षमता बल्कि उनकी कौशल को भी प्रभावित कर रही है। इसकी वजह से छात्र ज्ञान और जानकारी की नई सीमाओं को लांघने और खोजने की बजाय छोटी राजनीति में उलझ रहे हैं। विचारधारा के नाम पर अनैतिक राजनीति करके समाज और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के खिलाफ असहिष्णुता बढ़ाई जा रही है। इस तरह के प्रयासों से बहस को सीमित करके विश्वविद्यालयों और संस्थानों को दुनिया की नजरों से दूर करने की कोशिश की जा रही है।

अकादमिक जगत में समर्थन जुटाने का प्रयास  208 शिक्षाविदों के इस बयान को अकादमिक जगत में समर्थन जुटाने का सरकार का प्रयास माना जा रहा है। दरअसल, संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और जेएनयू परिसर में हुए हालिया हमले सहित कई मुद्दों के खिलाफ कुछ विश्वविद्यालयों में हुए प्रदर्शनों के चलते सरकार को विद्वानों के एक हिस्से द्वारा आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।

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