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सीएए और एनपीआर को लेकर जो नेता कल तक समर्थन में होते थे आज वो ही विरोध कर रहे हैंः-रविशंकर प्रसाद

नई दिल्ली। सीएए और एनपीआर को लेकर हो रहे हिंसात्मक विरोध को कांग्रेस जैसे बड़े राष्ट्रीय दल के समर्थन को केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद दुर्भाग्यपूर्ण मानते हैं। रविशंकर प्रसाद प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस के कार्यकाल में जब एनआरसी कानून लागू हुआ और 2010 में संसद में जनगणना पर बहस हुई तो लालू प्रसाद से लेकर मुलायम सिंह और तमाम वामपंथी दल इसके समर्थन में थे। वही लोग अब विरोध कर रहे हैं।

आखिर नागरिकता संशोधन कानून का देशव्यापी विरोध क्यों हो रहा है?

-देखिये, मैं इस संबंध में सबसे पहले एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं। यह कानून किसी भी हिंदुस्तानी पर लागू नहीं होता, मुस्लिम सहित। यह किसी की नागरिकता भी नहीं लेता। इसका सीमित उद्देश्य अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में रहने वाले और अपनी आस्था के कारण पीडि़त व प्रताडि़त हिंदु, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और इसाईयों को नागरिकता देने का हैं जिन्हें उनके घर से भगा दिया गया। यह पहली बार तो नहीं हो रहा है। साठ के दशक में युगांडा से हिंदुओं को ईदी अमीन ने निकाला तो उनको नागरिकता दी गई या नहीं? 1971 में बहुत सारे लोग भागकर आए तब इंदिरा जी ने दी। राजीव गांधी ने श्रीलंका से पीडि़त तमिलों को दिया तब भी किसी ने कुछ नहीं पूछा। मनमोहन सिंह, अशोक गहलोत, तरुण गोगोई ने कहा तो विरोध नहीं हुआ। यानी मोदी और अमित शाह कुछ करें तो गलत है, आप करें तो सही। यह कौन सा लॉजिक है? भारत की विरासत रही है कि आस्था के कारण जो लोग पीडि़त होते हैं उनको हम सम्मान देते हैं। इसीलिए हमने ईरान से आने वाले पारसी भाइयों को सम्मान दिया।

जब पहले ऐसा हुआ तो क्या बिना कानून में संशोधन किये ऐसे लोगों को नागरिकता नहीं दी जा सकती थी?

-पहले ग्रुप में दी जा रही थी। जबकि हम जिनकी बात कर रहे हैं वे पीडि़त होकर वर्षो से यहां रह रहे थे। देश में कहीं भी ऐसे लोगों को जाकर देखा जा सकता है। किस तरह वो जिल्लत में रह रहे थे। हमारा तो काउंटर चार्ज है कि यूपीए और कांग्रेस सरकार ने इन्हें नागरिकता क्यों नहीं दी? अफगानिस्तान में सिख और पाकिस्तान में हिंदु गिनती में बचे हैं।

तब इतना हिंसक आंदोलन क्यों हो रहा है?

– बिलकुल, मैं यहां सवाल पूछना चाहता हूं कि जब स्थिति इतनी स्पष्ट थी तो इतनी हायतौबा क्यों मचाई गई। वो कौन सी ताकते थीं जो हिंसा को उकसा रही थीं। और कांग्रेस ऐसी जिम्मेवार पार्टी जो देश पर 55 साल राज कर चुकी है उसने ऐसा क्यों किया। (नागरिकता कानून दिखाते हुए) यह कानून तो 1955 का है।

कांग्रेस कहती है कि एनपीआर एनआरसी की शुरुआत है?

-इसके जवाब की शुरुआत मैं एक उदाहरण से देता हूं। 7 मई 2010 को लोकसभा में 2011 की जनगणना पर चर्चा हुई, चिदंबरम साहब ने विस्तार से जवाब दिया और पूरे एनपीआर को सपोर्ट किया। उन्होंने कहा कि रजिस्टर ऑफ सिटीजन पापुलेशन रजिस्टर का सबसेट है। उस वक्त इस डिबेट में लालू प्रसाद, शरद यादव, मुलायम सिंह यादव ने हिस्सा लिया। यूपीए के स्टैंड के साथ सभी खड़े थे। पर आज वे विरोध कर रहे हैं। सीपीआइ व सीपीएम भी उनके साथ थे। ये कौन सा दोहरा मानदंड और चरित्र है। यहां मैं स्पष्ट कर दूं कि नरेंद्र मोदी जी की सरकार लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्ध है। विरोध करने और सवाल पूछने का सबको अधिकार है। नरेंद्र मोदी सहित पूरी सरकार की आलोचना करने का भी अधिकार है। लेकिन हिंसा का तांडव और टुकड़े टुकड़े गैंग के षडयंत्र को सफल होने नहीं दिया जाएगा। इतनी स्पष्टता के बावजूद ऐसा क्या हुआ कि इतनी हिंसा हुई।

इस हिंसा के पीछे किसे देखते हैं आप?

-दरअसल इस वोट बैंक की राजनीति में उत्तेजक और अतिवादी ताकतें सक्रिय हैं। इनमें पीएफआइ भी है। एमक्यूएम का नजरिया भी अलग है। ये लोग जानबूझकर उत्तेजना और अतिवाद के सहारे अपने षडयंत्र और राजनीति को सफल करते हैं। मुझे पीड़ा होती है कि कांग्रेस इनके साथ कैसे खड़ी होती है। क्या वोटबैंक के लिए ये दल यहां तक जाएंगे। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।

फिर एनपीआर क्यों जरूरी है?

-देखिए हर दस वर्ष पर देश में जनगणना होती है। इसके लिए बाकायदा एक कानून है। इसका संवैधानिक पहलू है। समाज के तमाम वर्गो को सहूलियतें देने और अनुसूचित जातियों जनजातियों समेत अन्य सभी आरक्षण का आधार पिछली जनसंख्या के आंकड़े होते हैं। जनगणना के निजी आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। यह काम पापुलेशन रजिस्टर से होता है। नीति निर्धारण, सेवाओं की बहाली और जनकल्याणकारी कार्यो के क्रियान्वयन के लिए यह बहुत जरूरी है। देश के कितने लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। कितने लोगों के पास मकान हैं, सभी आंकड़े इससे प्राप्त होते हैं। इसलिए नेशनल पापुलेशन रजिस्टर केंद्र भी इस्तेमाल करता है प्रदेश की सरकारें भी।

लेकिन कहा जा रहा है कि इस बार कुछ अतिरिक्त जानकारियां मांगी जा रही हैं।

-आप ही बताइए, देश में वोट कौन दे सकता है जो देश का नागरिक हो, लेकिन सिर्फ यही काफी नहीं है। आपका नाम वोटर लिस्ट में होना चाहिए और उसके साथ-साथ आपके पास वोटर आइकार्ड भी होना चाहिए। पैन कार्ड, आधार, पासपोर्ट, वोटर लिस्ट सभी में आपके मां-बाप का नाम होता है और ये सभी जानकारी सार्वजनिक होती है। तब आप विरोध नहीं करते? तब ये बात कहां से उठ रही हैं और क्यों उठ रही हैं और क्यों उठाई जा रही हैं? भ्रामक तथ्यों के आधार पर उकसाने की ये कार्रवाई क्यों हो रही है? हमारा आरोप है कि अलगाववादी, टुकड़े टुकड़े गैंग ये काम कर रहा है।

एनआरसी को लेकर भी सरकार आरोपों के घेरे में है?

-इसे भी मैं स्पष्ट कर देता हूं। नेशनल सिटीजनशिप एक्ट के सेक्शन 14 ए में कहा गया है कि केंद्र सरकार अनिवार्य तौर पर देश के सभी नागरिकों का पंजीकरण करेगी और उसे एक राष्ट्रीय आइडेंटिटी कार्ड जारी करेगी। साथ ही केंद्र सरकार भारतीय नागरिकों का एक राष्ट्रीय रजिस्टर रखेगी और इसके लिए एक नेशनल रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी का गठन किया जाएगा। यह कब लागू हुआ? यह लागू हुआ 3 दिसंबर 2004 को। किसकी सरकार थी? अगर कांग्रेस में हिम्मत थी तो इसे लागू करने से इनकार कर देती। उस सरकार के पीछे भी लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, शरद पवार, सीपीआइ, सीपीएम सब खड़े थे। एनआरसी की कल्पना जिस कानून से आई उसे लागू तो मनमोहन सिंह की सरकार ने किया। तो आप करें तो ठीक, हम करें तो आपको आपत्ति है। लेकिन एनआरसी की एक प्रक्रिया है। रूल 4 के मुताबिक एक तिथि तय होगी, वो तारीख गजट में घोषित होगी, फिर इसमें नाम चढ़ाए जाएंगे, उसका वेरिफिकेशन होगा, उस पर आपत्तियां मांगी जाएंगी, आपत्तियों का निराकरण होगा, फिर अपील का प्रावधान है। अभी तो कुछ नहीं हुआ। कोई राजनीतिक निर्णय भी नहीं हुआ। एनआरसी जब भी होगा इन नियमों के अनुसार होगा। प्रधानमंत्री ने सही कहा कि अभी इस पर बातचीत भी नहीं हुई।

तो क्या सरकार इसे लागू नहीं करेगी?

-यहां मैं आपको केवल लोकतांत्रिक देशों का हवाला देकर एक बात कहना चाहता हूं। आप अमेरिका, इंग्लैंड, डेनमार्क, फ्रांस किसी देश में ऐसे ही घुस सकते हैं क्या? जब तक आप वहां के नागरिक न हो या वैधानिक अनुमति न हो। क्या भारत को हम धर्मशाला बनाएंगे। मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि सरकार, भारतीय जनता पार्टी देश की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्ध हैं। हम भारत को बड़ी ताकत बनाना चाहते हैं। जहां समावेशी सरकार हो और सुरक्षित जनता। जनता की सुरक्षा आतंकवादियों, टुकड़े टुकड़े गैंग और माओवादियों के कुप्रभाव से हो। फिर क्या सरकार के शासन में कोई विभेद किया? क्या उज्ज्वला में मुस्लिम गांव को छोड़ दिया, क्या आयुष्मान भारत में अल्पसंख्यकों को छोड़ दिया, डिजिटल इंडिया में सीएससी में मुस्लिम वीएलई काम नहीं कर रहे। सच तो यह है कि हम किसी चीज को वोटबैंक के चश्मे से नहीं देखते, ये हमारा संवैधानिक दायित्व है। इस देश को बनाने बढ़ाने में मुस्लिमों ने बहुत काम किया है। इस बगिया में सबको खिलने का अधिकार है। लेकिन कोई इसे नुकसान पहुंचाएगा तो हम सख्ती करेंगे। हम बातचीत करने को भी तैयार है अगर कोई करना चाहता है। हम आश्वस्त करना चाहते हैं कि ये सारा कुछ नियमानुसार और भारतीयों के विकास और रक्षा की आवश्यकता के लिए हो रहा है।

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