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पूरी दुनिया में हार्ट ऑफ आक्‍सीजन के नाम से पहचान बनाने वाला अमेजन का जंगल अब खुद प्रदूषण की चपेट में

नई दिल्‍ली । पूरी दुनिया में हार्ट ऑफ आक्‍सीजन के नाम से पहचान बनाने वाला अमेजन का जंगल अब खुद प्रदूषण की चपेट में है। इसकी वजह है यहां पर लग रही आग। इस आग से उठने वाले धुएं से ब्राजील ही नहीं बल्कि कुछ और देश और उनके राज्‍य भी प्रभावित हैं। ब्राजील की ही बात करें तो इससे सबसे अधिक प्रभावित अमेजोनाज, एकरे, रॉन्‍डोनिया, रोराइमा पारा और माटो ग्रोसो हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस जंगल में इसी वर्ष 72 हजार से अधिक आग लगने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। इनमें इस जंगल में लगी छोटी व बड़ी सभी तरह की आग को शामिल किया गया है। इसके अलावा इनमें इंसानों की गलती और प्राकृतिक तौर पर लगी आग भी शामिल हैं।

चौकाने वाले हैं आंकड़े  मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो अमेजन के जंगल में आग लगने की घटनाओं में करीब 83 फीसद तक बढ़ोतरी हुई है। यह आंकड़े बेहद चौकाने वाले हैं। अमेजन की आग को लेकर सभी के अपने-अपने तर्क हैं। कुछ इसको जंगलों की अंधाधुंध कटाई तो कुछ इसको षड़यंत्र तक बता रहे हैं। वर्तमान की बात करें तो यहां के अमेजोनाज राज्‍य में अगस्‍त की शुरुआत में ही आग की वजह से इमरजेंसी लगानी पड़ गई थी।

आग के 72 हजार से अधिक मामले  अमेजन के जंगल में लगी आग को लेकर ब्राजील की स्‍पेस एजेंसी नेशनल इंस्‍टीट्यूट ऑफ स्‍पेस रिसर्च के मुताबिक आग लगने के इस वर्ष 72843 मामले सामने आ चुके हैं। 2013 जब से यहां पर लगने वाली आग का रिकॉर्ड किया जाना शुरू किया है तब से लेकर अब तक यह आंकड़े बेहद चिंताजनक है। नासा की तस्‍वीरों से मिली जानकारी के मुताबिक अमेजन बेसिन में ही केवल इस बार 9507 आग लगने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। आपको बता दें कि अमेजन दुनिया का सबसे बड़ा जंगल माना जाता है। दुनिया को करीब 20 फीसद आक्‍सीजन इसी जंगल से मिलती है। यही जंगल ग्‍लोबल वार्मिंग से बचाने में समर्थ हैं।

जंगल की आग से कई देश परेशान अमेजन की आग से सिर्फ ब्राजील के ही राज्‍य प्रभावित नहीं हो रहे हैं बल्कि पेरू के सीमावर्ती राज्‍य भी इसकी मार झेल रहे हैं। ब्राजील के माटो ग्रासो और पारा में भी आग लगने की घटनाएं बढ़ी हैं। रिपोर्ट्स की मानें तो यहां पर खेती के लिए धड़ल्‍ले से जंगलों को काटा जा रहा है। ऐसा करने वालों में यहां का स्‍थानीय लकड़ी माफिया भी शामिल है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि अमेजन के जंगल में आग प्राकृतिक तौर पर कम बल्कि षड़यंत्र के तौर पर ज्‍यादा लग रही है। इस बात को कहने का आधार मौसम है। जानकार मानते हैं कि अमे‍जन के जंगल में गर्मियों में आग लगना सामान्‍य घटना हो सकती है। लेकिन, यदि इसके अलावा इस तरह की भीषण आग लगती है तो इसकी वजह या तो मानवीय भूल हो सकती है या फिर षड़यंत्र।

खुद को सही बता रहे हैं जायर  वहीं जानकार इस बात से भी इंकार नहीं कर रहे हैं कि इन जंगलों में आग लगने की वजह कहीं न कहीं राष्‍ट्रपति जायर बोल्‍सोनारो की नीति है। उनके कार्यकाल में इस क्षेत्र में माइनिंग बढ़ी है। साथ ही पेड़ों की कटाई में भी इजाफा हुआ है। जायर खुद भी इस बात से इनकार नहीं कर रहे हैं। उनका कहना है कि खेती के लिए जमीन तैयार की जा रही है। बोल्‍सोनारो अपनी नीतियों को सही मान रहे हैं। यही वजह है कि अमेजन में जंगल कम होने की रिपोर्ट जिस अधिकारी ने तैयार की थी उसको उन्‍होंने हटा दिया था। इस रिपोर्ट में इससे होने वाले नुकसान का भी जिक्र किया गया था। बोल्‍सोनारो की मानें तो इस तरह की रिपोर्ट महज उन्‍हें बदनाम करने के लिए लाई जा रही हैं। उनके मुताबिक इसमें विपक्ष की साजिश है तो आम जनता के बीच अमेजन के जरिए उनकी गलत छवि पेश करना चाहती है। रॉयटर की मीडिया रिपोर्ट्स में शोधकर्ता अल्‍बेतो सेत्‍जेर के हवाले से कहा गया है कि गर्मी में भी जंगल में आग लगने की वजह प्राकृतिक नहीं होती है। आग हमेशा ही इंसानों द्वारा लगाई जाती है। गर्मी के मौसम में यह तेजी से फैलती है।

एक नजर में अमेजन अमेजन जंगल दुनिया के नौ देशा में फैला है। इनमें कोलंबिया, वेनेजुएला, इक्‍वाडोर, बोल्विया, गुयाना, सूरीनाम और फ्रेंच गुयाना शामिल हैं। यह दुनिया का सबसे बड़ा वर्षावन है। यहां के पेड़ इतने घने और बड़े हैं कि यहां की जमीन धूप को भी तरस जाती है। यहां पर हजारों किस्‍म के पेड़ और पौधे हैं जिनमें से कुछ जीवनदायी हैं तो कुछ जानलेवा भी हैं। इसके अलावा यहां पर पाए जाने वाले कीड़े मकोड़ों में कुछ तो ऐसे हैं जिन्‍हें कहीं और नहीं देखा गया। यहां के कीड़े भी इंसान की जान ले सकते हैं। बुलेट चींटी यहीं पर पाई जाती है। इसके अलावा यहां पर 3 हजार से ज्‍यादा मकडि़यों की प्रजातियां पाई जाती हैं। यहां पाई जाने वाली टारांटुला मकड़ी बेहद खतरनाक मानी जाती है। इसके जहर से इंसान की जान तक जा सकती है। अमेजन के जंंगल यहां पर रहने वाले आदिवासियों के लिए भी जाने जाते हैं। यहां पर करीब 400 के करीब आदिवासी जातियां रहती हैं। इनमें से कुछ तो ऐसी हैं जिनका बाहरी दुनिया से कोई सीधा संबंध नहीं है। यहां पर रहने वाली जनजातियां आज भी अपने मूल स्‍वरूप में ही यहां पर जीवन जीती हैं।

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