गंदे नाले में तब्दील हो चुकी शिवनाथ नदी को जन आंदोलन से बनाया पूजा योग्य
भिलाई। जल संरक्षण की दिशा में छत्तीसगढ़ के एक युवा समाजसेवी का प्रेरक प्रयास सामने है। दो साल पहले तक बदबूदार गंदे नाले में तब्दील हो चुकी शिवनाथ नदी उनके प्रयास से आज आमजन की आस्था का विषय बन गई है। दुर्ग, छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गांव से शुरू हुए शिवनाथ बचाओ आंदोलन में आज हर खास-ओ-आम शामिल हो गया है। आम महिला, पुरुषों और युवाओं से लेकर व्यापारियों, अधिकारियों और न्यायाधीशों तक, सब मिलजुलकर शिवनाथ मैया की आरती श्रद्धा सहित गाते हैं।
आने वाली पीढ़ियों का भविष्य खतरे में शिवनाथ बचाओ आंदोलन के समन्वयक संजय कुमार मिश्रा बताते हैं, नदियां हमारी जीवनधारा हैं, हमारी धरोहर हैं, यदि इन्हें बचाने के लिए हम अब भी नहीं चेते तो आने वाली पीढ़ियों को एक भयावह भविष्य के अतिरिक्त कुछ और नहीं दे सकेंगे। अपनी नदी को हम नहीं बचाएंगे तो यह काम कोई और क्यों करेगा।
आंदोलन की हुई शुरुआत इसीलिए हमने आंदोलन के रूप में इसकी शुरुआत की ताकि जन-जन की भागीदारी बढ़ाते चलें। खुशी है कि आज हर व्यक्ति की जीवनचर्या जीवनदायिनी शिवनाथ के जल से ही शुरू होती है। अब इस आंदोलन से हर कोई जुड़ना चाहता है, कारवां बढ़ता जा रहा है। जनता की आस्था के आगे अब शासन-प्रशासन से लेकर सरकारों तक पर दबाव बन रहा है।
बिजनेस छोड़ प्रकृति की ओर रुख संजय ने बताया कि अपनी फार्मास्यूटिकल कंपनी चलाते हुए मैंने प्रदूषण के कारकों को करीब से देखा। रसायन विज्ञान में MSC हूं, इसलिए समझ सका कि तमाम रसायनों का प्रकृति पर कितना घातक असर हो रहा है। फार्मास्यूटिकल का बिजनेस छोड़कर प्रकृति की ओर रुख करना बेहतर जाना। अपनी जरूरतें बेहद सीमित कर लीं। परिवार की जीविका को पारिवारिक कृषि व्यवसाय के हवाले कर समाजसेवा की राह पकड़ ली। लोगों ने फैसले पर सवाल उठाए, पर मैंने जिद पकड़ ली थी।
शिवनाथ बचाओ आंदोलन की नींव राष्ट्रीय संस्था जनसुनवाई फाउंडेशन के साथ जुड़कर छत्तीसगढ़ में ग्रामीण वंचित समुदायों की मदद और प्राकृतिक संसाधनों की हिफाजत के बड़े काम में सहभागी बना। शिवनाथ बचाओ आंदोलन की नींव 2017 में तब पड़ी, जब जनसुनवाई फाउंडेशन ने दुर्ग जिले के झेंझरी गांव में जनपंचायत कार्यक्रम किया।
महाआरती की पहल गांव वालों ने बताया कि नदी के पानी के स्पर्श मात्र से उन्हें घातक रोग हो रहे हैं। पशु मर रहे हैं। कृषि तबाह हो गई है। शहरों के तमाम बड़े नालों को नदी में छोड़ा जा रहा था। हमने नदी की दुर्दशा को देखते हुए आंदोलन की शुरुआत की। लेकिन आम लोगों को नदी से कोई सरोकार शेष नहीं रह गया था। वे उम्मीद छोड़ चुके थे। लिहाजा, लोगों को नदी से जोड़ने के लिए हर पूर्णिमा को शिवनाथ महाआरती की पहल की गई। इसके बाद, गंदे नालों को डायवर्ट करने और उद्योगों में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने सरकार को पत्र लिखकर मांग करने का सिलसिला शुरू हुआ। आरटीआइ लगा लगा कर नदी प्रदूषण के कारकों और नदी स्वास्थ्य की रिपोर्ट हासिल की गई। राज्य के जल संसाधन मंत्री को यह सारे दस्तावेज सौंप कर नदी के संवर्धन की मांग की गई।
मुहिम में हजारों लोग जुड़े प्रयास तब रंग लाते दिखा जब शिवनाथ नदी को बचाने के इस आंदोलन में जिला न्यायाधीश गोविंद कुमार मिश्रा सहित जिला न्यायालय के सभी न्यायाधीशों ने आरती में सहभाग शुरू किया। आज महज दो साल के भीतर शिवनाथ नदी को बचाने की मुहिम में हजारों लोग जुड़ गए हैं। तटवर्ती शहरों और गांवों में शिवनाथ नदी के तटों पर प्रत्येक पूर्णिमा को शिवनाथ की महाआरती में खासी भीड़ जुटती है। शिवनाथ बचाओ आंदोलन के संयोजक संजय मिश्रा ने कहा कि हमने एक उपेक्षित और दुर्दशाग्रस्त नदी को जन आस्था का केंद्र बनाकर इसके संरक्षण के लिए शासन-प्रशासन और सरकारों को सोचने पर विवश कर दिया। नाले में तब्दील हो चुकी शिवनाथ नदी की आज लोगो आरती उतार रहे हैं। लेकिन नदियों में मिलने वाले गंदे नालों का इलाज जनता नहीं बल्कि सरकार को ही करना है। छत्तीसगढ़ की दुर्दशाग्रस्त अन्य नदियों के संरक्षण को भी अभियान छेड़ा गया है, बस्तर की इंद्रावती नही, बिलासपुर की अरपा नदी के लिए स्थानीय लोगों को जोड़ प्रयास शुरू कर दिए गए हैं।