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बार-बार चुनाव होने से सरकार के साथ-साथ राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों पर अत्यधिक बोझ बढ़ता है-अमित शाह

नई दिल्ली। भाजपा ने विधि आयोग में एक देश-एक चुनाव का समर्थन किया है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने विधि आयोग को लिखे पत्र में देश में एक साथ चुनाव से होने वाले फायदे को गिनाया है। इसके साथ ही उन्होंने एक साथ चुनाव के विरोध को राजनीति से प्रेरित बताया है। भाजपा नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने विधि आयोग के अध्यक्ष जस्टिस बलबीर चौहान को शाह का पत्र सौंपा। शाह ने आयोग का बताया कि एक साथ चुनाव देश के लिए नई बात नहीं है और आजादी के बाद दो दशक तक लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते रहे हैं।

अलग-अलग चुनाव होने से विकास के काम बाधित होते हैं अमित शाह ने विधि आयोग को बताया कि किस तरह लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय चुनाव अलग-अलग होने से न सिर्फ विकास के काम बाधित होते हैं, बल्कि सरकारी कर्मचारियों को अपने मूल काम को छोड़कर चुनाव प्रक्रिया में लगना पड़ता है।

बार-बार चुनाव होने से प्रत्याशियों पर अत्यधिक बोझ बढ़ता है बार-बार चुनाव के असर का उदाहरण देते हुए शाह ने बताया कि 2016-17 के दौरान महाराष्ट्र में 307 दिन कोई न कोई हिस्सा चुनावी आचार संहिता के अधीन था। यानी इस दौरान यहां सारे विकास के कार्य ठप रहे। आठ पन्नों के अपने पत्र में शाह ने बताया कि किस तरह बार-बार चुनाव होने से सरकार के साथ-साथ राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों पर अत्यधिक बोझ बढ़ता है और इससे भ्रष्टाचार और कालेधन को बढ़ावा मिलता है।

एक साथ चुनाव नई बात नहीं, 1952 से 1967 तक होते रहे हैं एक साथ चुनाव के विभिन्न पार्टियों के विरोध को राजनीति से प्रेरित बताते हुए शाह ने आयोग को बताया कि देश में इसके पहले भी एक साथ लोकसभा और विधानसभा के चुनाव होते रहे हैं। उनके अनुसार 1952 से 1967 तक सभी चुनाव एक साथ ही हुए थे। उसके बाद कुछ राज्यों में सरकार गिर जाने के कारण यह सिलसिला गड़बड़ा गया, जो आजतक जारी है।

भाजपा अध्यक्ष ने एक साथ चुनाव को बताया देश की जरूरत शाह ने जोर देकर कहा कि एक साथ चुनाव कराना भले भाजपा के 2014 चुनावी घोषणा पत्र का मुद्दा रहा हो, लेकिन इसकी जरूरत काफी लंबे समय से महसूस की जा रही थी। 1983 में चुनाव आयोग ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में एक साथ चुनाव कराने की जरूरत बताई थी। खुद विधि आयोग ने 1999 में अपनी रिपोर्ट में एक साथ चुनाव के सिद्धांत को और भी स्पष्ट रूप से पेश किया था। 2015 में संसद की स्थायी समिति ने भी इसकी वकालत की थी।

विपक्षी पार्टियां एक साथ चुनाव कराने का विरोध कर रही हैं गौरतलब है कि कांग्रेस, वामपंथी, शिवसेना, सपा, राकांपा, तृणमूल कांग्रेस और टीडीपी जैसी विपक्षी पार्टियां एक साथ चुनाव कराने का विरोध कर रही हैं। इन दलों का कहना है कि लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव अलग-अलग मुद्दों पर लड़े जाते हैं, इसीलिए उन्हें एक साथ मिलाना ठीक नहीं होगा। वहीं बीजेडी और राजग की सहयोगी जदयू एक साथ चुनाव कराने का समर्थन कर रही है।

विधि आयोग राजनीतिक दलों से विचार-विमर्श करेगा फिलहाल विधि आयोग एक चुनाव कराने के मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों से विचार-विमर्श कर रहा है। इसके बाद वह इसपर सरकार को अपनी रिपोर्ट देगा।

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