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उत्तरकाशी के इस मंदिर में साधना कर रही हैं उमा भारती

उत्तरकाशी: चैत्र नवरात्र में गंगा तट पर ध्यान एवं साधना करने के लिए केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री उमा भारती हर्षिल पहुंचीं। आज से उमा ने हर्षिल के श्रीलक्ष्मी-नारायण मंदिर (हरि मंदिर) में अपना अनुष्ठान शुरू कर दिया। वर्ष 2017 में भी चैत्र नवरात्र के दौरान उमा ने गंगोत्री के शीतकालीन पड़ाव मुखवा के चंदोमति माता मंदिर में नौ दिन तक मौनव्रत साधना की थी।

केंद्रीय मंत्री उमा भारती शाम छह बजे सड़क मार्ग से उत्तरकाशी पहुंचीं और सीधे हर्षिल के लिए रवाना हुई। यहां पहुंचकर रविवार की रात नौ बजे उमा भारती ने हरि मंदिर में पूजा अर्चना की थी तथा मंदिर की धर्मशाला में ही रुकी। उमा भारती 25 मार्च तक इसी मंदिर में ध्यान साधना करेंगी।

यह उमा का निजी कार्यक्रम है, लिहाजा उन्होंने और मीडिया समेत अन्य लोगों से भी दूरी बनाए रखने के निर्देश प्रशासन को दिए हैं। केंद्रीय मंत्री की व्यवस्थाओं में तैनात उप जिलाधिकारी देवेंद्र सिंह नेगी ने बताया हरि मंदिर में ध्यान और पूजा-अर्चना के लिए सभी व्यवस्थाएं कर दी गई हैं।

सुरक्षा में प्रशासन मुस्तैद 

केंद्रीय मंत्री उमा भारती के ध्यान एवं साधना कार्यक्रम में कोई खलल न पड़े, इसके लिए प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस, स्वास्थ्य विभाग की टीम, एलआइयू (स्थानीय अभिसूचना इकाई) के अधिकारी व एसडीआरएफ की टीम को हर्षिल में तैनात किया गया है।

हरि की शिला है हर्षिल 

जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 75 किमी दूर हर्षिल कस्बा पर्यटन स्थल के रूप में विशेष पहचान रखता है। मान्यता है कि यहां जलंध्री नदी के किनारे हरि मंदिर में श्रीविष्णु शिला रूप में परिवर्तित हुए थे। तब से इस स्थान का नाम हरि शिला हुआ। कालांतर में हरि शिला को लोग हर्षिल नाम से पुकारने लगे।

‘गंगोत्री तीर्थ क्षेत्र : ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन’ पुस्तक के लेखक उमारमण सेमवाल बताते हैं कि शिव महापुराण में समुद्र पुत्र जलंधर के भगवान शंकर को युद्ध के लिए ललकारने और माता पार्वती को उसे सौंप देने का उल्लेख है। प्रसंग के अनुसार पहले युद्ध में भगवान शंकर जलंधर को पराजित नहीं कर सके। कारण, जलंधर की पत्नी बृंदा महान पतिव्रता नारी थी। लेकिन, अंत में भगवान विष्णु के सहयोग से उन्होंने जलंधर का वध किया। तब क्रोधित बृंदा ने भगवान विष्णु को पत्थर हो जाने का श्राप दे दिया।

भगवान विष्णु के आशीर्वाद से ही बृंदा तुलसी के रूप में परिवर्तित हुई और हर्षिल के पास नदी के रूप में बहने लगी। आज भी हर्षिल में जलंध्री नाम की नदी बहती है और लक्ष्मी-नारायण शिला का अभिषेक करती है।

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