शारीरिक व मानसिक शुद्धिकरण के लिए किया जाता है उपवास
हिंदू धर्म में व्रत व उपवास का अधिक महत्व माना जाता है। हिंदुओं में प्रत्येक दिवस कोई न कोई व्रत जरूर होता है, सभी धर्मों के लोग व्रत को अपनी-अपनी विधि के अनुसार रखते हैं। व्रत के सामान्य अर्थ है संकल्प या फिर दृढ़ निश्चय। इसका आध्यात्मिक अर्थ होता है ईश्वर के समीप बैठना। दरअसल व्रत का असल संबंध व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक शुद्धिकरण से होता है। उपवास में भोजन का त्याग कर खाली पेट रहना पड़ता है, लेकिन आजकल के दौर में तो लोग उपवास के नाम पर बहुत सारी चीजें खाने लगे हैं। जिससे उन्हें कई तरह कि बीमारियों से गुजरना पड़ता है।
वैसे तो व्रत स्वास्थ की सलामती के लिए रखा जाता है, लेकिन इन सभी चीजों के कारण हमारे शरीर को नुकसान भी पहुंच सकता है। इसलिए व्रत में केवल फलाहार का ही सेवन करना चाहिए जिससे हमारा शरीर स्वस्थ रहे। व्रत रखने से पांचन तंत्र को आराम मिलता है और शरीर में जमा विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैँ, जिससे हमारा पांचन तंत्र ठीक रहता है। उपवास रखने से शांत और स्थिर रहने का अवसर भी मिलता है जिसके कारण मानसिक तनाव भी नहीं रहता। मोटापे को कम करने में भी व्रत व उपवास एक अलग ही भूमिका निभाता है। साथ ही, धर्म लाभ मिलता है। व्रत रखने से शरीर तो स्वस्थ रहता ही है साथ ही पेट से संबंधित बीमारियों की रोकथाम हो जाती है। इससे कब्ज, गैस, एसिडीटी, अजीर्ण, अरूचि, सिरदर्द, बुखार, मोटापा जैसे कई रोगों का नाश हो जाता है। व्रत करने से आध्यत्मिक शक्ति तो बढ़ती ही है।साथ ही, ज्ञान, विचार, पवित्रता बुद्धि का विकास होता है।
इसी कारण उपवास व्रत को पूजा पद्धति में भी शामिल किया गया है। व्रत रखने का एक लाभ यह भी अगर मौसम परिवर्तन की अवस्था में उपवास रखने पर ऋतु संक्रमण काल की बीमारियां पास नहीं आती। जिससे हमें मौसमी बीमारियों का खतरा नहीं होता। इसके अलावा मनुष्य में भूखे रहने व भूख सहने की इच्छा शक्ति का विकास होता है। उपवास रखने से खाने से नियंत्रण होने के कारण किसी भी बीमारी का खतरा नहीं होता जिसके कारण हमारा शरीर स्वस्थ रहता है।