Uncategorized

इस खूनी ट्रैक पर 34 साल में 27 हाथी गंवा चुके जान

रायवाला, देहरादून : राजाजी टाइगर रिजर्व से गुजर रहा हरिद्वार-देहरादून रेलवे ट्रैक न सिर्फ हाथियों के स्वच्छंद विचरण में बाधक बन रहा, बल्कि उनकी जान पर भी भारी पड़ रहा है। 34 साल पहले अस्तित्व में आए राजाजी नेशनल पार्क से गुजर रहे इस रेल ट्रैक पर अब तक ट्रेन से टकराकर 27 हाथियों की जान जा चुकी है। एलीफेंट टास्क फोर्स (ईटीएफ) के आंकड़ों पर गौर करें तो हाथियों की मौत के मामले में उत्तराखंड पूरे देश में तीसरे नंबर पर है।

ईटीएफ के आंकड़े बताते हैं कि उत्तराखंड में सर्वाधिक हाथियों की मौत हरिद्वार-देहरादून रेलवे ट्रैक पर ही हुई। इनमें मोतीचूर व कांसरो, दो ऐसी जगह हैं, जहां सबसे अधिक हादसे हुए। यहां 15 अक्टूबर 2016 को एक व 14 जनवरी 2013 को दो हाथियों की मौत ट्रेन से टकराने पर हुई।

अब पहले 17 फरवरी 2017 और फिर 20 फरवरी को हुए हादसे ने तो सुरक्षा इंतजामों की कलई खोलकर रख दी है। हकीकत यह है कि इस रेलवे ट्रैक पर हाथियों की सुरक्षा के इंतजाम नदारद हैं। जबकि, केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के माध्यम से ईटीएफ राज्य सरकार को रेलवे ट्रैक पर सुरक्षा के कई सुझाव दे चुका है।

इनमें पार्क क्षेत्र में रेलवे ट्रैक के इर्द-गिर्द अनिवार्य गश्त, साफ-सफाई, कॉरीडोर क्षेत्र में साइन बोर्ड, ट्रेन की गति 30 किमी प्रति घंटा समेत कई सुझाव शामिल हैं। यही नहीं, हरिद्वार-देहरादून रेलवे लाइन के विद्युतीकरण से पहले हाथियों की सुरक्षा के मद्देनजर सभी उपाय किए जाने चाहिए थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जबकि, सुरक्षा को सभी इंतजाम करने की जिम्मेदारी पार्क प्रशासन की है।

लोको पायलट के लिए चुनौती

जिस ट्रेन की चपेट में आने से हाथी की मौत होती है, वन विभाग उसके चालक के खिलाफ वन्य जीव अधिनियम की धाराओं में मुकदमा दर्ज करा देता है। जंगल से गुजर रहे रेलवे ट्रैक पर कई जगह घुमाव हैं, इस कारण दूर से हाथी नजर नहीं आता। हाथी के अचानक ट्रैक पर आ जाने से तत्काल ब्रेक लगाना रेलवे सेफ्टी नियमों के अनुरूप नहीं है। इमरजेंसी ब्रेक लगाकर ट्रेन लगभग 50 मीटर की दूरी पर रुकती है। 30 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चलने पर भी यह समस्या रहती है।

खुली गश्त की पोल, वायरलेस ठप 

30 दिन के अंतराल में दो हाथियों की मौत ने ट्रैक पर नियमित गश्त और सुरक्षा इंतजाम की पोल खोल दी है। जनवरी 2013 में ट्रेन से कटकर एक साथ दो हाथियों की मौत के बाद रेलवे और वन विभाग के बीच सामंजस्य बनाने पर सहमति बनी। इसके तहत वन विभाग की ओर से मोतीचूर, रायवाला और कांसरो रेलवे स्टेशन पर वायरलेस सेट लगाए गए, ताकि ट्रैक पर हाथी के होने की स्थिति में सूचना दी जा सके। लेकिन, हकीकत देखिए कि ये वायरलेस लगने के एक साल बाद ही बंद हो गए।

डब्ल्यूटीआइ भी संभाल रही जिम्मा 

रेल ट्रैक पर हाथियों की सुरक्षा का जिम्मा वन विभाग के अलावा डब्ल्यूटीआइ भी संभाल रही है। पेट्रोलिंग हेड दिनेश पांडे ने बताया कि मोतीचूर से रायवाला के बीच संस्था के चार कर्मचारी नियमित गश्त करते हैं। लेकिन, वन विभाग के कर्मचारी मौके पर नहीं होते।

वहीं, पार्क के पूर्व डायरेक्ट के निर्देश पर रायवाला से कांसरो के बीच जिम्मेदारी डब्ल्यूटीआइ से हटा दी गई है। इस ट्रैक पर सिर्फ वन विभाग के पास ही सुरक्षा की जिम्मेदारी है और इसी ट्रैक पर हादसे भी हो रहे हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button