News UpdateUttarakhand

सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का हुआ समापन

देहरादून। आईटी पार्क डांडा लखाैंड में आयोजित श्रीमद भागवत कथा का शनिवार को समापन हो गया। प्रसिद्ध कथा वाचक दिल्ली निवासी पंडित राकेश चंद्र डुकलान के सानिध्य में श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया गया। भागवत कथा के अंतिम दिन जन्मेजय नाग यज्ञ पर प्रवचन दिए गए। जन्मेजय अर्जुन के पुत्र और राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय की पत्नी वशुष्टमा थी जो काशी राजा की पुत्री थी बड़े होकर जब जन्मेजय ने पिता परीक्षित की मृत्यु का कारण सर्प दंश जाना तो उसने बदला लेने का उपाय सोचा।
जन्मेजय ने सड़कों के संहार के लिए सर सत्र नामक महायज्ञ का आयोजन किया नागों के इस युग में भस्म होने का श्राप उनकी मां कुंदरू ने दिया था। जब लाखों नाग सर्प यह की अग्नि में गिरने लगे तो भयभीत तक्ष ने इंद्र की शरण ली उधर जब ऋषियों ने  तक्ष का नाम लेकर आरती डालनी आरंभ की तब मजबूरी में इंद्र ने पक्ष को अपने उत्तरदाई में छुपा कर वहां लाना पड़ा वहां वह तक्षक को अकेला छोड़ कर अपने महल में लौट आए विद्वान ब्राह्मण बालक आस्तिक से प्रसन्न होकर जन्मेजय ने उसे एक वरदान देने की इच्छा प्रकट की तो उसने वरदान में एक की तुरंत समाप्ति का वर मांगा और इसी कारण तक्षक भी बच गए। आचार्य पंडित राकेश चंद्र डुकलान जी महाराज ने कहा श्रीमद् भागवत कथा सुनने से जीवन का कल्याण है जहां भागवत कथा का गुणगान होता है महाप्रभु का वास होता है। भागवत कथा के अंतिम दिन आचार्य राकेश चंद्र डुकलान जी ने पंत परिवार और श्रद्धालुओं का आभार प्रकट किया कि उन्होंने बड़े प्यार और लगन के साथ कथा को सुना। उन्होंने कहा कि हमें हमेशा प्रभु को हाथ जोड़कर जीवन व्यतीत करना चाहिए। श्रीमद भागवत कथा का आयोजन प्रमोद पंत, रवि पंत परिवार द्वारा किया गया।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button