Uttarakhand

देश की आंतरिक सुरक्षा- एक प्राथमिकता

हाल ही में कश्मीर को लेकर धारा 370 पुनः लागू करने के पक्ष में जिस प्रकार के बयान और समाचार आ रहे है वह किसी गंभीर खतरे का आभास दिलाते है। देश मे विभिन्न स्थानों पर सुनियोजित हत्याएं और दंगो की देश विरोधी घटनाओं को कुछ विपक्षी नेताओं का लगातार समर्थन और भारतीय सेना का मनोबल गिराने के प्रयास भी स्थिति को गंभीर बनाय हुए है। दुश्मन देश का महिमा मंडन तो शायद कुछ नेताओं का फैशन हो गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि देश को दो मोर्चो पर नही बल्कि तीन मोर्चो पर युद्ध करना पड़ सकता है। चीन और पाकिस्तानी मोर्चो के अलावा देश मे फैले देश के आंतरिक दुश्मनों या यूं कहिए कि भारत माता के गद्दारों का तीसरा मोर्चा भी कम खतरनाक नही है। कुलमिलाकर देश बारूद के ढेर पर बैठा है। देश की सीमायें तो भारतीय सेना के रहते सुरक्षितः है लेकिन आंतरिक सुरक्षा को गंभीर चेतावनी है और इसका मुख्य कारण है दोषियों के प्रति हल्का रवैया जिसके कारण कोई भी नेता, अभिनेता, टुकड़े टुकड़े गैंग या अन्य अलगाववादी जो चाहता है बोल देता है। आसानी से अपने षड्यंत्र को अंजाम दे देता है और भोली भाली जनता को जाति और धर्म की घृणा फैलाकर गुमराह कर देता है या फिर भड़काकर दंगा कराने का प्रयास करता है। धर्मनिरपेक्ष देश मे जातिवादी, धर्मवादी और क्षेत्र वादी संगठनों की बाढ़ आई हुई है। एक शांत होता है तो दूसरा चिल्लाने लगता है। क्या यही हमारा भारत देश है? ऐसा तो कभी नही देखा जहां विपक्ष ने देश हित के सामने अपने निजी हितों को प्राथमिकता दी हो। देश पर जब भी किसी प्रकार का संकट आया विपक्ष ने सभी भेदभाव भुलाकर सरकार के साथ एकजुटता का परिचय दिया। देश ने एक आवाज़ में एकता और मातृभूमि से प्रेम का संदेश दिया। बच्चे बच्चे की जबान पर भारत माता की जय के जयकारे गूंजे लेकिन आज हमारे ही कुछ नेता भारत माता की जय, वंदेमातरम और राष्ट्रीय गान का विरोध करते नजर आते है। यहाँतक की देश के सर्वोच्च स्थल लोकसभा या राज्य सभा मे भी ऐसे बयान देने में गुरेज नही करते। क्या यह सब देश द्रोह और गंभीर अपराध नही है। ऐसे लोगो को स्वतंत्र छोड़ना देश के लिए कितना घातक हो सकता है इसका अनुमान लगते ही दिल सिहर उठता है। देश की जनता का क्या दोष है? क्यो उसे बार बार ऐसी ताकतों का दंश झेलना पड़ता है? आखिर हम लोग किधर जा रहे हैं? हमारी प्राथमिकताएं क्या है और उसमें क्या बाधा है? अगर गंभीरता पूर्वक विचार नही किया गया तो भविष्य में इसके भयावह परिणाम हमे भुगतने पड सकते है। जिस विकास का हम दम भरते है वही विकास कही हमारे रास्ते का पत्थर न बन जाय। आप के सामने हलवे की प्लेट हो लेकिन गले मे दुश्मन का फंदा। आप क्या करेंगे ? पहले गला मुक्त कराएंगे या हलवा खाएंगे? हमे अपनी प्राथमिकताएं निश्चित करनी होंगी। सच्चा विकास तभी संभव है जब विकास परक वातावरण हो। आप आगे बढ़ते रहे और दुश्मन पीछे से विनाश का खेल खेलते रहे तो आप कितना आगे चल पाएंगे। देश विकास कर रहा है, आगे बढ़ रहा है और विश्व मे सम्मान भी पा रहा है लेकिन देश की आंतरिक सुरक्षा किरकिरी कराने में पीछे नही है। सरकार को चाहिये कि युगों से चले आ रहे नियम का पालन करे और देश के विरुद्ध अपराध को सर्वोच्च दंड देने का पराविधान और वचन पूरा करे। विकास से पहले सुरक्षा आवश्यक है। अतः आवश्यक हो तो कानून में बदलाव करे नही तो अपना राष्ट्र धर्म सुदृढ़ करे और देश के दुश्मन बाहरी अथवा अंदरूनी के प्रति किसी भी उदासीनता और दया भाव का प्रदर्शन न करे तभी हम विश्व गुरु बनने की और कदम बढ़ा सकेंगे।साथ ही सच्चे भारतीयों को भी समय की गंभीरता को समझना होगा। कबूतर के आंखे बंद कर लेने से बिल्ली से खतरा कम नही होता। हमे भी जागरूक रहना होगा और हर देश द्रोही तत्व का तिरस्कार करना होगा आखिर भारत हमारा है और हम भारतीय। भारत हमारा गौरव है, हमारा सम्मान है जिसे कायम रखना हम सभी का पहला कर्तव्य है।
लेखकः- ललित मोहन शर्मा

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button